Stress is increasing among youth : हंसते-खेलते मासूम बच्चों, छात्रों या युवाओं को देखकर कौन खुश नहीं होगा? अपने माता-पिता के लाडले जब आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं, तो शायद उन्हें भी नहीं पता होता होगा कि वह अपने माता-पिता, रिश्तेदारों और दोस्तों सहित अपने हर जानने वालों को कितना गहरा दुख दे रहे हैं. 2022 में भारत में 13,000 से अधिक छात्रों ने सुसाइड किया. 2022 में आत्महत्या से होने वाली सभी मौतों में 7.6% छात्र थे. पिछले कुछ वर्षों में भारत में आत्महत्या की दरों में वृद्धि हुई है. आखिर बच्चों या युवाओं का सुसाइड रेट क्यों बढ़ रहा है? ये चिंता का बड़ा विषय है. कोर्ट पुलिस की कोशिशों के बीच शुरुआत घर और स्कूल से भी होनी जरूरी है, जहां बच्चे अपना अधिकांश समय बिताते हैं.
कब रूकेंगी ये दर्दनाक घटनाएं
13 साल का विग्नेश प्रमोद कुमार मुंबई से सटे कल्याण में आठवीं कक्षा में पढ़ता था. आर्ट पढ़ाने वाली महिला टीचर और स्कूल के अन्य छात्रों की प्रताड़ना बर्दाश्त नहीं कर पाया. एक सुसाइड नोट लिखकर मौत को गले लगा लिया. विग्नेश प्रमोद कुमार के चाचा ने बताया, “भैया काम पर थे. भाभी और भतीजा स्कूल गए थे. मैं भी जाने वाला था. फिर भाई का मुझे कॉल आया कि लड़के ने फांसी लगा ली है. सुसाइड नोट मिला है. टीचर और बच्चे उसको तंग कर रहे थे, ऐसा उसने लिखा है.” ऐसी कई घटनाएं रोजाना पढ़ने, सुनने को मिलती होंगी, मगर क्या इसे रोकने के लिए कोई कदम भी उठाए जा रहे हैं?
उठाने होंगे कड़े कदम
विद्यार्थियों में आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी चिंता जताई है, बाल अधिकार कार्यकर्ता शोभा पंचमुख द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय का यह कर्तव्य है कि वह कॉलेज और संस्थानों में ऐसा माहौल बनाने के लिए कदम उठाए, जहां आत्महत्या की घटनाएं न हों. आत्महत्या की बढ़ती दर को “चिंताजनक” बताते हुए कोर्ट ने अधिकारियों को तत्काल कदम उठाने के निर्देश दिये. याचिका में आंकड़ों का जिक्र दिखा, जहां महाराष्ट्र में छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की संख्या में वृद्धि बताई गई. अकेले महाराष्ट्र में 2019 में आत्महत्या की संख्या 1487 थी, 2020 में यह 1648 थी और 2021 में 1834 मामले रहे. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा दिये गए आंकड़ों को देखें तो करीब 10% की बढ़त दिखती है.
क्यों बच्चे ऐसा कर रहे
मुंबई पुलिस के साथ कई मामलों में काम करने वाले आदित्य बिड़ला एजुकेशन ट्रस्ट की पहल “एमपॉवर” के हेल्पलाइन पर हर दिन तनाव से गुजर रहे छात्रों के करीब 30-35 कॉल्स आते हैं. रिलेशनशिप, नशे की लत, सोशल मीडिया का प्रभाव जैसे कुछ मुख्य कारण उनकी समस्याएं होती हैं. एमपॉवर का कहना है कि कोविडकाल के बाद से कई छात्रों का आईक्यू लेवल कम हुआ है और उनमें गुस्सा भी काफी बढ़ा है. एमपॉवर की मनोचिकित्सक विशाखा सोढ़ानी ने बताया, “18-24 उम्र के करीब 900 कॉल महीने में आ ही जाते हैं. समय के साथ ये कॉल बढ़ रहे हैं. रिलेशनशिप, सोशल मीडिया, एंगर इशू, नशा ड्रग्स शराब ये सभी लत आत्महत्या करने के बड़े कारण हैं. रिलेशनशिप में आने का प्रेशर है. पैरेंट्स को समझ नहीं आता इनको हैंडल कैसे करना है. मना करो, तो इनका गुस्सा बढ़ता है, बेकाबू होते हैं. कोविड के बाद बच्चों का आईक्यू लेवल भी अफेक्ट हुआ है. जाहिर है माता-पिता, स्कूल-कॉलेज को ज्यादा संवेदनशील होने और अपने बच्चों पर बगैर ज्यादा हस्तक्षेप या टोका-टोकी किए ध्यान रखने की जरूरत है.”