केरल में RSS की तीन दिवसीय समन्वय बैठक की शुरुआत, BJP सहित 32 संगठनों के नेता ले रहे हैं हिस्सा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत और छह संयुक्त महासचिवों की मौजूदगी में केरल में शनिवार को तीन-दिवसीय ‘अखिल भारतीय समन्वय बैठक’ की शुरुआत हुई. बैठक में ‘संघ से प्रेरित’ 32 संगठनों के राष्ट्रीय स्तर के नेता भी शामिल हो रहे हैं. इसमें प्रमुख रूप से भारतीय जनता पार्टी (BJP) अध्यक्ष जे पी नड्डा, इसके महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष, विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख आलोक कुमार और भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष हिरण्मय पंड्या शामिल हैं.

राष्ट्रीय स्तर की समन्वय बैठक के पहले दिन, इन 32 संगठनों के लगभग 300 कार्यकर्ताओं को वायनाड में हाल ही में हुए भूस्खलन और स्वयंसेवकों द्वारा किए गए राहत और सेवा कार्यों के बारे में जानकारी दी गई. इन कार्यकर्ताओं में महिलाएं भी शामिल हैं. विभिन्न संगठनों के संगठन सचिवों ने अपनी गतिविधियों के बारे में जानकारी और अनुभव साझा किए.

इसके अलावा बैठक में राष्ट्रीय हित के विभिन्न मुद्दों के मौजूदा परिदृश्य, हाल की महत्वपूर्ण घटनाओं और सामाजिक परिवर्तन के अन्य आयामों और योजनाओं पर चर्चा की गई. संगठनों के प्रतिनिधियों ने विभिन्न मुद्दों पर आपसी सहयोग और समन्वय को और बढ़ाने के लिए आवश्यक उपायों पर भी चर्चा की.

केरल में बीजेपी के कमल की फैलती खुशबू के बीच आरएसएस की समन्वय बैठक पहली बार राज्य में आयोजित की गई है. केरल में दशकों से आरएसएस जमीनी स्तर पर सक्रिय है, लेकिन बीजेपी को चुनावी सफलता अब जाकर मिलने लगी है.

लोकसभा चुनाव के दौरान जेपी नड्डा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बीजेपी को पहले आरएसएस की जरूरत पड़ती थी, अब बीजेपी अपने आप को चलाती है.

हालांकि केरल में हालात अलग हैं. यहां बीजेपी को आरएसएस की ज्यादा जरूरत है, क्योंकि यहां आरएसएस बेहद मजबूत है और बीजेपी धीरे-धीरे पैर जमा रही है.

केरल में आरएसएस की मजबूती का ये आलम है कि संगठन की दृष्टि से आरएसएस ने इसे इसी साल उत्तर और दक्षिण दो प्रांतों में बांटा है. राज्य में आरएसएस की शाखाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. केरल में इस साल संघ की 5142 शाखाएं हैं. पांच साल पहले 2019 में ये संख्या 4285 थी. घनत्व के हिसाब से ये बढोत्तरी संघ के गढ़ कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान से भी अधिक है.

समन्वय बैठक का एक उद्देश्य संघ से जुड़े सभी वैचारिक संगठनों में आपसी समन्वय बढ़ाना है.
 
सवाल ये भी है कि संघ के इतने मजबूत होने के बावजूद अन्य राज्यों की तरह केरल में बीजेपी चुनावों में ताकतवर बनकर क्यों नहीं उभर सकी. राज्य में ईसाई-मुस्लिम की बड़ी आबादी, लेफ्ट फ्रंट का वर्चस्व और वैचारिक हिंसा इसका एक बड़ा कारण है. हालांकि अब बीजेपी की स्थिति सुधर रही है. यह लोकसभा चुनाव बीजेपी के लिए बेहतरीन प्रदर्शन करने का मौका रहा.

बीजेपी ने पहली बार केरल में कोई लोकसभा सीट जीती. सुरेश गोपी ने त्रिसूर लोक सभा सीट करीब 75 हजार वोटों से जीती. वहीं राजीव चंद्रशेखर तिरुवनंतपुरम में शशि थरूर से केवल 16 हजार वोट से हारे.

एनडीए का वोट शेयर 19.21% हो गया, जो 2019 लोकसभा चुनाव से करीब साढ़े तीन प्रतिशत अधिक है. तीन लोकसभा सीटों पर बीजेपी को 30 प्रतिशत से अधिक वोट मिले. बीजेपी 11 विधानसभा में पहले, नौ विधानसभा सीटों पर दूसरे नंबर पर और 10 विधानसभा सीटों पर पांच हजार वोटों के अंतर से तीसरे नंबर पर आई.

केरल में 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं. लोकसभा में अपनी बढ़ी ताकत से उत्साहित बीजेपी अब एक बड़ी ताकत बनने की तैयारी में है.

बैठक 31 अगस्त से दो सितंबर तक होगी. आरएसएस ने कहा है कि चूंकि संगठन 2025 में विजयादशमी पर अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है, इसलिए वो सामाजिक सुधार और राष्ट्र निर्माण के लिए पांच पहल शुरू करेगा.

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