चंपई की क्या चाल? बगावत के बाद भी क्यों नहीं छोड़ा मंत्रिपद; क्या हेमंत की रणनीति में फंसे ‘कोल्हान टाइगर’

झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) में बड़ी टूट की अटकलों पर धीरे-धीरे विराम लगने लगा है. पार्टी से नाराज चल रहे पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने बुधवार को नई पार्टी बनाने का ऐलान किया. हालांकि उनके साथ अब तक कोई भी विधायक खुलकर सामने नहीं आया है. कुछ दिन पहले तक अटकले थी कि पार्टी के कम से कम 6 विधायक उनके साथ हैं. हालांकि समय के साथ पार्टी से निष्कासित विधायक लोबिन हेंब्रम (Lobin hembrum) के अलावा किसी अन्य एमएलए को उनके साथ नहीं देखा गया है. इन सबके बीच चंपई सोरेन नाराजगी की बात तो करते रहे हैं लेकिन उन्होंने अभी तक हेमंत सोरेन मंत्रिमंडल से इस्तीफा नहीं दिया है. न ही हेमंत सोरेन ने उन्हें मंत्रिमंडल से हटाया है. जेएमएम का कोई अन्य नेता भी अब तक चंपई के खिलाफ मुखर होता नहीं दिख रहा है. 

चंपई और हेमंत में चल रहा है शह और मात का खेल

चंपई सोरेन पिछले लगभग एक सप्ताह से हेमंत सोरेन के खिलाफ खुलकर बयानबाजी कर रहे हैं. हालांकि उन्होंने अभी तक न ही जेएएमएम छोड़ने का ऐलान किया है न ही मंत्रिपद से इस्तीफा दिया है. चंपई सोरेन हेमंत सोरेन के अगले स्टेप का इंतजार कर रहे हैं. मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने की घटना को लेकर उन्होंने हेमंत सोरेन पर अपमानित करने का आरोप लगाया था. अब अगर मंत्रिपद से हेमंत उन्हें बर्खास्त करते हैं तो वो इसे सहानुभूति के तौर पर जनता के बीच ले जाना चाहेंगे. 

हेमंत पार्टी में अपने विरोधियों पर कार्रवाई करने से बचते रहे हैं
जेएमएम में जब से हेमंत सोरेन के युग की शुरुआत हुई है. पार्टी में बहुत ही कम टूट देखने को मिली है. स्थापना काल से ही जेएमएम में कई दिग्गज समय-समय पर पार्टी छोड़ते रहे हैं. हालांकि हेमंत सोरेन ने जब से कमान संभाली है यह संख्या कम हुआ है. जो पुराने नेता पार्टी छोड़कर भी गए वो वापस पार्टी में आ जाते हैं. हेमंत सोरेन की रणनीति रही है कि वो पार्टी के बागी नेताओं को बहुत अधिक तवज्जो नहीं देते हैं. 

हेमंत सोरेन के दौर में जिन नेताओं ने पार्टी छोड़ा वो हेमलाल मुर्मू हों या दिवंगत साइमन मरांडी. पार्टी की तरफ से उनके ऊपर कभी कार्रवाई नहीं की गयी. बाद में वो नेता फिर वापस पार्टी में आ गए. पिछले लगभग एक साल से विधायक लोबिन हेंब्रम पार्टी लाइन से बाहर जाकर बयान देते रहे थे. लोकसभा चुनाव में उनके विद्रोह के बाद उन्हें पार्टी से निकाला गया. इससे पहले जेएमएम की तरफ से उन्हें तवज्जो नहीं दी जा रही थी. चंपई को लेकर भी पार्टी इसी रणनीति पर काम कर रही है.

चंपई को लेकर जेएमएम की सतर्क रणनीति
चंपई सोरेन जेएमएम के वरिष्ठ नेता हैं. उन्होंने शिबू सोरेन के साथ लगभग 2 दशक तक राजनीति की थी. कोल्हान में निर्मल महतो की हत्या के बाद चंपई ने पार्टी को मजबूत किया था. ऐसे में जेएमएम की तरफ से चंपई सोरेन को लेकर बेहद ही सतर्क रणनीति बनायी गयी है. पार्टी ने पहले उनके करीबी विधायकों को साधा. फिर धीरे-धीरे उन्हें साइड करने की कोशिश की गई. जेएमएम किसी भी हालत में जनता के बीच यह मैसेज नहीं देना चाहती की चंपई सोरेन के अपमान का कोई उनका इरादा है. 

चंपई के पास बचे हैं क्या रास्ते?
चंपई सोरेन की बीजेपी में शामिल होने की चर्चा थी. हालांकि बीजेपी के साथ उनकी बात नहीं बनी. चुनाव से ठीक पहले बीजेपी चंपई को पार्टी में लाकर कोई नया प्रयोग करने से बचना चाहती है. चंपई सोरेन ने दूसरे विकल्प को अभी चुना है जिसके तहत उन्होंने नई पार्टी या संगठन को खड़ा करने की बात कही है. हालांकि चुनाव में अब बहुत कम समय है ऐसे में किसी नई राजनीतिक दल को खड़ा करना उनके लिए बहुत आसान नहीं होगा. 

क्या जयराम महतो का मिलेगा साथ? 
झारखंड की राजनीति में चर्चा यह भी है कि चंपई सोरेन झारखंडी भाषा खतियान समिति के नेता जयराम महतो के साथ मिलकर भी नया विकल्प तलाश कर सकते हैं. जेबीकेएसएस ने पिछले लोकसभा चुनाव में गिरिडीह, रांची, धनबाद, हजारीबाग में अच्छा वोट प्रतिशत पाया था. चंपई सोरेन एक सुलझे हुए नेता रहे हैं अगर वो जयराम महतो के साथ जाते हैं तो एक मजबूत विकल्प दोनों मिलकर तैयार कर सकते हैं. हालांकि इसे लेकर अभी कुछ भी कहना जल्दीबाजी होगी. क्योंकि वैचारिक स्तर पर चंपई सोरेन को जयराम महतो के समर्थक स्वीकार करेंगे इसे लेकर संसय है. क्योंकि जयराम महतो का पूरा आंदोलन जेएमएम और बीजेपी के स्थापित नेताओं के खिलाफ ही रहा है. 

Photo Credit: facebook.com/jairaamkumaar.mahato

झारखंड में कई क्षेत्रीय दल बने, कई बिखरे
झारखंड की राजनीति में स्थानीयता और अन्य मुद्दों को लेकर समय-समय पर कई राजनीतिक दलों का गठन होता रहा है. हालांकि जेएमएम की टक्कर में कोई राजनीतिक दल अब तक अपना आधार नहीं बना सका है. 90 की दशक में जेएमएम से टूटकर ही जेएमएम मार्डी का गठन किया गया था. जिसका अस्तित्व कुछ ही सालों बाद खत्म हो गया. बाद के दिनों शिबू सोरेन के बेहद करीबी रहे सूरज मंडल ने झारखंड विकास दल का गठन किया था. इस दल को भी जनता का साथ नहीं मिला और सूरज मंडल की राजनीति लगभग खत्म हो गयी.

बीजेपी से विद्रोह कर बाबूलाल मरांडी ने झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया था. लेकिन साल 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद उसका विलय बीजेपी में हो गया. पिछले 2 साल में भी स्थानीयता को लेकर कुछ दलों का गठन किया गया है हालांकि इन दलों में भी आपसी कलह देखने को मिल रहे हैं. कोल्हान में ही पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने भी जय भारत समानता पार्टी का गठन किया था जिसका बाद में कांग्रेस में विलय हो गया था. 

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