चीन के हर मंसूबे को नाकाम करेगा INS ‘अरिघात’! भारत के समंदर के योद्धा की हर बात जानिए

पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया था. वाजपेयी जी का सपना था कि जमीन, हवा और समुद्र में परमाणु शक्ति को मजबूत किया जाए और आज उनका सपना सच होता दिख रहा है. परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल से लैस पनडुब्बी ‘आईएनएस अरिघात’ (INS Arighat) को विशाखापत्तनम में नौसेना में शामिल किया गया. आईएनएस ‘अरिघात’ नौसैनिक शक्ति और परमाणु प्रतिरोध क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है.

भारत के न्यूक्लियर ट्रायड यानी जल-थल और नम से परमाणु हमला करने की क्षमता और मजबूत हुई है. INS ‘अरिधात’ भारत की रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ाएगी और इससे एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत का प्रभाव बढ़ेगा.चीन के साथ जारी सैन्य टकराव के बीच विश्वसनीय रणनीतिक निरोध के लिए यह महत्वपूर्ण है. अमेरिकी नौसेना के पास कुल 71 पनडुब्बियों का बेड़ा है, जिसमें 14 बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियां हैं.

अरिघात शब्द का क्या है मतलब?
‘अरिघात’ शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है. संस्कृत में इसका अर्थ है, दुश्मनों का संहार करने वाला. भारत की इस दूसरी परमाणु पनडुब्बी को विशाखापट्टनम स्थित शिपयार्ड में बनाया गया है.

इसके निर्माण के बाद भारत के जंगी बेड़े में 16 डीजल (एसएसके) कन्वेंशनल सबमरीन हो जाएगी व तीन परमाणु पनडुब्बी (एसएसबीएन) भी भारत के पास होगीं. गौरतलब है कि इससे पहले भारत के पास एसएसएन यानी न्यूक्लियर पावर पनडुब्बी को दस साल की लीज खत्म होने के बाद वर्ष 2022 में वापस रूस भेज दिया गया था. वर्ष 2004 में भारत ने चार एसएसबीएन (‘शिप, सबर्मसिबल, बैलिस्टिक, न्यूक्लियर’) पनडुब्बी बनाने के लिए एडवांसड टेक्नोलॉजी वेसेल (एटीवी) लॉन्च किया था. इस प्रोजेक्ट की एक चौथी पनडुब्बी (कोड नेम एस-4) भी निर्माणाधीन है.

इस परमाणु पनडुब्बी का वजन करीब छह हजार टन है। अरिघात की लंबाई करीब 110 मीटर और चौड़ाई 11 मीटर है। आईएनएस ‘अरिघात’ स्ट्रेटेजिक फोर्स कमांड का हिस्सा बनेगी और स्ट्रेटेजिक फोर्स से जुड़े होने के कारण इस परमाणु पनडुब्बी की कमीशनिंग के बारे में नौसेना द्वारा कोई भी आधिकारिक सूचना साझा नहीं की गई है.

‘अरिघात’ पर स्वदेशी सिस्टम और उपकरण
‘आईएनएस अरिघात’ पर स्वदेशी सिस्टम और उपकरण लगे हैं, जिनकी संकल्पना से डिजाइन तक और निर्माण से एकीकरण तक भारतीय वैज्ञानिकों, उद्योग और नौसेना कर्मियों द्वारा किया गया है. इस पनडुब्बी में स्वदेशी रूप से की गई तकनीकी प्रगति के कारण यह अपने पूर्ववर्ती ‘अरिहंत’ की तुलना में काफी उन्नत है. दोनों पनडुब्बियों की मौजूदगी संभावित विरोधियों को रोकने और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की भारत की क्षमता को बढ़ाएगी.

सुखोई-30एमकेआई, मिराज-2000, जगुआर और राफेल लड़ाकू विमान परमाणु गुरुत्वाकर्षण बम पहुंचा सकते हैं. पृथ्वी-II (350 किमी), अग्नि-1 (700 किमी), अग्नि-2 (2,000 किमी), अग्नि-3 (3,000 किमी) और अग्नि-5 (अधिक 5,000 किमी) मिसाइलों को सामरिक बल कमान द्वारा शामिल किया गया.

आईएनएस अरिहंत में सुधार इसे “अपने पूर्ववर्ती अरिहंत की तुलना में काफी अधिक उन्नत बनाता है, जो 2018 में पूरी तरह से चालू हो गया. दोनों मिलकर संभावित विरोधियों को रोकने और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की भारत की क्षमता को बढ़ाएंगे. 

जल्द आएगी पनडुब्बी आइएनएस ‘अरिदमन’
भारत तीसरी स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी आइएएनएस अरिदमन का निर्माण भी कर रहा है. यह पनडुब्बी 3,500 किलोमीटर तक मार करने वाले के-4 मिसाइली से लैस होगी. अगले वर्ष यह पनडुब्बी नौसेना के बेड़े में शामिल हो सकती है. परमाणु पनडुब्बी सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि ये महीनों तक पानी के अंदर रह लगाना मुश्किल होता है. यह दुश्मन की नजर से बच कर जवाबी हमला करने में सक्षम होती है.

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