9 साल बाद भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में हिस्सा लेने पाकिस्तान (Pakistan) पहुंच गए. वे 24 घंटे वहां रहेंगे और पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय वार्ता नहीं करेंगे. ऐसी जानकारी विदेश मंत्रालय की तरफ से दी गई है. हालांकि आज रात सभी सदस्य देशों के राष्ट्र प्रमुखों के आगमन पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने रात्रिभोज दिया तो जयशंकर भी शामिल हुए. इस दौरान दोनों के बीच अभिवादन भी हुआ. जयशंकर के पाकिस्तान जाने की खबरों के बाद से ही पाकिस्तान में काफी खुशी का माहौल था. पाकिस्तानी सरकार और फौज के साथ-साथ आम जनता भी काफी एक्साइटेड थी. पाकिस्तान के कई सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर और डिजिटल पत्रकारों ने तो यहां तक दावा किया है कि जयशंकर के पाकिस्तान आने की खबर से आम लोग काफी खुश हैं, लेकिन ऐसी खबरों को दिखाने से पाकिस्तान के हुक्मरान मना कर रहे हैं. आपको बता दें कि 2019 में धारा 370 हटने के बाद पाकिस्तान ने भारत से सभी तरह के राजनयिक संबंध तोड़ दिए थे. वहीं भारत सीमा पार से आने वाले आतंकवाद के बंद होने तक पाकिस्तान से किसी भी तरह की बातचीत के लिए तैयार नहीं था. फिर ऐसा क्या हुआ कि जयशंकर को पाकिस्तान भेजा गया और पाकिस्तान अंदर ही अंदर जयशंकर के आने से बेहद खुश है.
भारत और पाकिस्तान की जरूरत
भारत के लिए एससीओ में जाना इसलिए जरूरी था कि वह नहीं चाहता कि पाकिस्तान को इतना महत्वपूर्ण माना जाए कि उसकी वजह से वह एससीओ में शामिल नहीं हुआ. साथ ही एससीओ को भारत एक मजबूत संगठन की तरह भी देखता है. एससीओ भारत की कनेक्ट सेंट्रल एशिया नीति को आगे बढ़ाता है. भारत को मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने में एससीओ से सहायता मिलती है. चीन और पाकिस्तान जैसे देशों से इस मंच पर सार्थक बात हो सकती है. साथ ही पश्चिमी देशों के साथ संतुलन बनाने और चीन-रूस की करीबी को रोकने में भी इस मंच से भारत को सहायता मिलती है. वहीं पाकिस्तान के लिए जयशंकर का आना अरबो डॉलर के आने जैसा है. पाकिस्तान इन दिनों खस्ताहाल है. उसे कर्ज तक नहीं मिल रहा. दुनिया उसे डूबा हुआ देश मान रही है. चीन तक उसे कर्ज देने से बच रहा है. ऐसे में जयशंकर के आने से पाकिस्तान गदगद है. वह दुनिया को ये दिखा रहा है कि वो उतना भी बदनाम नहीं है कि कोई उसके यहां आना ही नहीं चाहे. साथ ही उसके यहां विदेश से आए मेहमान सुरक्षित हैं. ये अलग बात है कि पाकिस्तान में लगातार आतंकवादी वारदातें हो रही हैं और इमरान खान की पार्टी धरने पर बैठी है. इमरान खान की पार्टी के नेता तो जयशंकर को भी अपने धरना स्थल पर आकर संबोधित करने तक का आमंत्रण दे रहे हैं. वहीं पाकिस्तान की जनता अपने हुक्मरानों से इतनी नाखुश है कि वो जयशंकर का स्वागत कर ये जताना चाहती है कि वो विकास चाहती है और अपने देश में भी ऐसे नेता चाहती है.
रिश्ते जोड़ने की चाहत
अनुभवी पाकिस्तानी पत्रकार जावेद इकबाल ने मंगलवार को कहा कि एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर की इस्लामाबाद यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार हो सकता है. इकबाल ने कहा, “यह भारत की ओर से एक अच्छी प्रतिक्रिया है कि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर एससीओ शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं. हमें उम्मीद है कि कुछ गतिरोध होगा. किसी भी द्विपक्षीय बैठक की कोई पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन जब भी देश के नेता होंगे दो राष्ट्र मिलते हैं, जिन राष्ट्रों के बीच तनावपूर्ण संबंध हैं, मुझे लगता है कि वहां बर्फ तोड़ने वाली बात हो सकती है…” इसी तरह से पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक और पत्रकार भारत से संबंधों की आस लगाए हुए हैं. उन्हें लग रहा है कि अगर भारत से रिश्ते थोड़े भी सामान्य हो गए तो पाकिस्तान कर्ज के दलदल से निकल सकता है. हालांकि, आतंकवादियों से दूरी बनाने के लिए पाकिस्तान और उसके हुक्मरान अब भी तैयार नहीं हैं.
कब बना एससीओ?
शंघाई सहयोग संगठन एक स्थायी अंतरसरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है. इसकी स्थापना 15 जून 2001 को शंघाई में कजाखस्तान गणराज्य, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, किर्गिज़ गणराज्य, रूसी संघ, ताजिकिस्तान गणराज्य और उज़्बेकिस्तान गणराज्य द्वारा की गई थी. पहले इसका नाम शंघाई फाइव था. शंघाई फाइव का गठन रूस, चीन, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान और ताजिकिस्तान ने साथ मिलकर वर्ष 1996 में किया था.2002 में, सेंट पीटर्सबर्ग में राज्यों के प्रमुखों की परिषद की बैठक में शंघाई सहयोग संगठन के चार्टर पर हस्ताक्षर किए गए, जो 19 सितंबर, 2003 को लागू हुआ.
एससीओ के उद्देश्य
सदस्य राज्यों के बीच आपसी विश्वास, मित्रता और अच्छे-पड़ोसीपन को मजबूत करना.राजनीति, व्यापार, अर्थव्यवस्था, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, संस्कृति, शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण, आदि जैसे क्षेत्रों में सदस्य राज्यों के बीच प्रभावी सहयोग को प्रोत्साहित करना.क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को संयुक्त रूप से सुनिश्चित करना और बनाए रखना.एक नई लोकतांत्रिक, निष्पक्ष और तर्कसंगत अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देना.
एससीओ में क्या होता है?
एससीओ का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय राज्यों के प्रमुखों की परिषद (सीएचएस) है। इसकी वर्ष में एक बार बैठक होती है और संगठन के सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय लिया जाता है. संगठन के भीतर बहुपक्षीय सहयोग और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की रणनीति पर चर्चा करने, आर्थिक और अन्य क्षेत्रों में मौलिक और सामयिक मुद्दों को निर्धारित करने और एससीओ के बजट को मंजूरी देने के लिए सरकार के प्रमुखों (प्रधानमंत्रियों) की परिषद (सीएचजी) की साल में एक बार बैठक होती है. सीएचएस और सीएचजी की बैठकों के अलावा, विदेशी मामलों, राष्ट्रीय रक्षा, सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और व्यापार, संस्कृति, स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, आपातकालीन रोकथाम और राहत, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, कृषि, पर बैठकों के लिए भी तंत्र हैं. संगठन के 2 स्थायी निकाय हैं. बीजिंग में सचिवालय और ताशकंद में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (आरएटीएस) की कार्यकारी समिति. एससीओ महासचिव और आरएटीएस कार्यकारी समिति के निदेशक को सीएचएस द्वारा तीन साल के कार्यकाल के लिए नियुक्त किया जाता है. 1 जनवरी, 2022 को, झांग मिंग (चीन) और आर. ई. मिर्जाएव (उज्बेकिस्तान) ने क्रमशः एससीओ महासचिव और आरएटीएस कार्यकारी समिति के निदेशक के रूप में पदभार संभाला.
एससीओ के कितने सदस्य?
एससीओ की आधिकारिक भाषाएं रूसी और चीनी हैं.वर्तमान में, एससीओ में 9 सदस्य देश हैं.इनमें भारत, ईरान इस्लामी गणराज्य, कजाखस्तान गणराज्य, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, किर्गिज़ गणराज्य, इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान, रूसी संघ, ताजिकिस्तान गणराज्य, उज़्बेकिस्तान गणराज्य हैं. कई अन्य देश इसमें शामिल होना चाहते हैं. ऐसी खबरें हैं कि करीब 40 देशों ने एससीओ में शामिल होने के लिए आवेदन दिया है. इनमें तुर्की भी एक है. आवेदन करने वाले ज्यादातर देश अमेरिका से नाराज हैं. चीन चाहता है कि ज्यादा से ज्यादा देश इसका हिस्सा बनें. इससे उसका प्रभुत्व बढ़ेगा. हालांकि भारत का मानना है कि एससीओ को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए और सोच-समझकर अन्य देशों को सदस्य बनाना चाहिए. अब देखना है कि क्या एससीओ में और देश इस बार जुड़ पाते हैं या नहीं.