अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस को कभी टेलिकॉम की दुनिया में क्रांति लाने के लिए याद किया जाता है, लेकिन अब सिर्फ इसे डिफॉल्टर के रूप में याद किया जाएगा. धीरूभाई अंबानी का रिलायंस ग्रुप 28000 करोड़ का था. 2005 में जब दोनों भाइयों मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच इसका बंटवारा हुआ, तो अनिल के हिस्से टेलिकॉम सेक्टर आया था. यह सेक्टर मुनाफे कमाने की असीम संभावनाओं के साथ घिरा था. बंटवारे में तय हुआ कि अगले 10 साल तक मुकेश अंबानी टेलिकॉम इंडस्ट्री में दखल नहीं देंगे. लेकिन अनिल अंबानी ने बिजनेस में ऐसे फैसले लिए जो उनकी कंपनियों के लिए घातक साबित हुए. जानें टेलीकॉम सेक्टर की किंग रिलायंस कम्युनिकेशंस कैसे बर्बाद हुई? मुकेश अंबानी को क्यों चुकाना पड़ा छोटे भाई का कर्ज:-
रिलायंस इन्फोकॉम की शुरुआत 2002 में हुई थी. तब इसके कॉम्पिटिशन में एयरटेल, हच (जो बाद में वोडाफोन बनी) थी. यही वो दौर था, जब भारत में 4G की शुरुआत हो रही थी. इसलिए दोनों कंपनियों ने GSM टेक्नोलॉजी चुनी. वहीं, अनिल अंबानी की रिलायंस ने CDMA को चुना, जो तब 2G-3G नेटवर्क पर ही सपोर्ट करता था. भारी निवेश के बाद भी अनिल इसमें पिछड़ते चले गए.
अनिल अंबानी ने इसके बाद 2005 में ऐडलैब्स और 2008 में ड्रीमवर्क्स के साथ डील की. ड्रीमवर्क्स के साथ 1.2 अरब डॉलर की डील हुई थी. इसी बीच उन्होंने इन्फ्रॉस्ट्रक्चर के बिजनेस में भी हाथ आजमाए. हालांकि, इंटरटेनमेंट और इन्फ्रॉस्ट्रक्चर में अनिल अंबानी को खासी बढ़त नहीं मिली. 2014 आते-आते उनकी पावर इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियां बड़े कर्ज में डूब गईं. रिलायंस कम्युनिकेशन पर ध्यान नहीं दिया गया. इसके बुरे नतीजे सामने आने लगे. फिर शुरू हुआ कर्ज लेने और नहीं चुकाने का दौर. देनदारियां मिटाने के लिए कंपनियों को बेचने तक की नौबत आने लगी. घाटा बड़ा होता जा रहा था और बिजनेस का साइज छोटा होता जा रहा था.
घाटे का सौदा साबित हुआ एरिक्सन डील
आरकॉम ने एरिक्सन से 2013 में एक समझौता किया था. समझौते के मुताबिक, एरिक्सन को रिलायंस के मोबाइल फोन टावर, फिक्स्ड टेलीफोन लाइन, ब्रॉडबैंड, वायरलेस वॉयस और डेटा के काम मैनेज करने थे. ये डील 7 साल के लिए हुई थी. लेकिन ये बेहद घाटे का सौदा साबित हुआ. 2018 में एरिक्सन नेशनल कंपनी लॉ अपीलिएट ट्रिब्यूनल पहुंच गई. एरिक्शन ने आरोप लगाया कि आरकॉम ने उससे काम करा लिया और उसके 1100 करोड़ रुपये नहीं दे रही है.
2014 से अनिल अंबानी की मुश्किलें बढ़ने लगीं. उन्हें उबरने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. कर्ज बढ़ते जा रहे थे. इसी के साथ 2016 में 10 साल की डेडलाइन पूरी हो गई. यानी अब मुकेश अंबानी टेलीकॉम सेक्टर में उतर सकते थे. मुकेश अंबानी ने पूरी तैयारी कर रखी थी. 2016 में रिलायंस ने जियो की शुरुआत की. जियो की आंधी में आरकॉम तो क्या तमाम टेलीकॉम कंपनियां तबाह हो गईं.
जियो के मार्केट में आने के बाद एयरटेल, वोडाफोन जैसी बड़ी टेलिकॉम कंपनियां तो एकाएक घाटे में जाने लगीं. ये अनिल अंबानी के लिए बहुत बड़ा शॉक था. इससे उबरने के लिए उन्हें बिग सिनेमा, रिलायंस बिग ब्रॉडकास्टिंग और बिग मैजिक जैसी कंपनियों को बेचना पड़ गया.
जब मुकेश अंबानी ने निभाया बड़े भाई का फर्ज
बिजनेस में भले ही मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी राहें अलग थीं. लेकिन एक समय ऐसा भी आया, जब मुकेश अंबानी ने बड़े भाई का फर्ज निभाते हुए अनिल अंबानी को कर्ज से बचाया. दरअसल, 2018 में जब एरिक्सन कोर्ट पहुंची थी, तो इस पर आरकॉम ने भी एरिक्सन के खिलाफ नेशनल कंपनी लॉ अपीलिएट ट्राइब्यूनल में अपील की. ऑरकॉम ने दिवालिया प्रक्रिया का विरोध किया था. उसने कहा कि उसकी रिलायंस जियो और ब्रुकफील्ड के साथ असेट्स बेचने की बात चल रही है. डील हो जाने पर वो एरिक्सन को पैसे चुका देगी.
आरकॉम ने एरिक्सन को 550 करोड़ रुपये देने का वादा किया. 30 सितंबर 2018 तक ये रकम देनी थी. लेकिन अनिल अंबानी ऐसा नहीं कर पाए. इस पर एरिक्सन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. तब मुकेश अंबानी ने अपने छोटे भाई का कर्ज अदा किया था.