Justice Easy Or Challenging In Digital India: संविधान@75 के ‘NDTV INDIA संवाद’ में इंटरनेट फ्रीडम के सह-संस्थापक और अधिवक्ता अपार गुप्ता ने कहा कि जिला अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट में डिजिटल व्यवस्था लागू हो गई है. सुप्रीम कोर्ट में तो अब ज्यादातर वकील फाइलें कम और आईपैड लिए ज्यादा दिख रहे हैं. न्यायपालिका में डिजिटल फाइलिंग की व्यवस्था तो हो ही गई है, वकील अब वर्चुअल भी उपस्थित हो सकते हैं और ये ज्यादातर हाईकोर्ट में भी है और दिल्ली के तो जिला अदालतों में भी है.मगर अगर देश के ग्रामीण जिलों में जाएं तो वहां की तस्वीर अलग है. कई जगह तो अदालतों में बिजली तक कट जाती है.हालांकि, ये मानना पड़ेगा कि धीरे-धीरे ही सही इसमें बहुत काम हो रहा है. हर राज्य अपने हिसाब से इस पर काम कर रहे हैं.
काफी बदलाव आया
अधिवक्ता पल्लवी बरूआ ने कहा कि जब हम लॉ की पढ़ाई कर रहे थे तो किताबों ही पढ़ाई का साधन थीं, मगर वो बहुत महंगी होती थीं. डिजिटल होने के बाद सारी किताबें अब आईपैड में आ गईं हैं. लीगल रिसर्च काफी पहले शुरू हो गया था और अब काफी कुछ इंटरनेट पर उपलब्ध है. 20-30 साल पहले लोग कैसे काम करते थे, मैं ये सोचकर हैरान होती हूं. कोविड के समय गुवाहाटी में बैठकर सुप्रीम कोर्ट में ऑनलाइन उपलब्ध होती थी. जज के सामने नहीं होने का थोड़ा फर्क तो सुनवाई में पड़ता है. कारण ये है कि सामने होने पर आप रिक्वेस्ट कर सकते हैं, अगर जज कह देते हैं कि केस में कोई दम नहीं है, लेकिन अगर आप ऑनलाइन होते हैं तो ऐसा मौका नहीं मिलता. मगर ऑनलाइन के फायदे बहुत हैं. तो तारीख पर तारीख वाला जो चलता था, उसमें इससे काफी बदलाव आया है.
पर्यावरण को भी फायदा
अधिवक्ता खुशबू जैन ने कहा कि वकीलों का डिजिटल कोर्ट में उपस्थित होना बहुत जरूरी हो गया है. कई बार वकीलों को सिर्फ हाजिरी के लिए कोर्ट में खुद में आकर उपस्थित होना पड़ता था. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट आने में वकीलों का काफी समय और पैसा बर्बाद होता था. इससे आरोपियों, गवाहों और केस करने वालों को फायदा हो रहा है.तकनीक अभी नई है, इसलिए थोड़ी सी अभी समस्या रहती है, लेकिन इसके फायदे जनता से लेकर वकीलों और सिस्टम को भी हो रहा है. फाइनल सुनवाई वाले दिन वकील जरूर अभी भी खुद प्रजेंट होना चाहते हैं, लेकिन अन्य दिनों में ऑनलाइन प्रजेंट होने काफी सस्ता और सुलभ है. ऑनलाइन पेपर फाइलिंग का फायदा पर्यावरण पर भी काफी पड़ता है.
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डेटा प्रोटेक्शन एक्ट जरूरी
अधिवक्ता हितेश जैन ने बताया कि संविधान में तकनीक का इस्तेमाल कर न्याय आसान हो सकता है. नये तीनों आपराधिक कानूनों में तकनीक का खास ख्याल रखा गया है.जस्टिस चंद्रचूड़ ने बहुत सही कहा है कि न्यायिक तंत्र से जुड़े लोगों को सोशल मीडिया की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. कारण ये है कि कोई स्टेटमेंट देने पर उसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है. 50 से अधिक उम्र के लोगों में अभी डि़जिटल तकनीक से उतने नहीं जुड़े हैं. वो मोबाइल फोन तो इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उन्हें सोशल मीडिया से लेकर डिजिटल काम करने की आदत नहीं है. तो ऐसे सभी लोगों को गाइड करने की आवश्यकता है. सरकार ने डेटा प्रोटेक्शन एक्ट लाकर सरकार ने बड़ा अच्छा काम किया है. न्यायपालिका भी इस पर काम कर रहा.