आगे बढ़ना है, तो सिर्फ पढ़ना नहीं ठीक से पढ़ना होगा, क्योंकि पढ़ाई के लापरवाही 5वीं और 8वीं कक्षा के छात्रों को भारी पड़ सकती है… उन्हें परीक्षा में फेल कर सकती है. केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) में कई बड़े बदलाव किये हैं और ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ खत्म कर दी है. इस फैसले के तहत अब कक्षा 5 और 8 की वार्षिक परीक्षा में असफल छात्रों को फेल किया जाएगा. हालांकि, फेल हुए छात्रों को 2 महीने में फिर परीक्षा देने का मौका दिया जाएगा. दूसरे चांस में भी फेल होने वाले को उसी क्लास में पूरे साल पढ़ना होगा. सरकार ने हालांकि, साफ कर दिया है कि आठवीं में फेल हुए छात्रों को स्कूल से निकाला नहीं जाएगा.
ये फैसला कहां-कहां लागू होगा?
राज्य चाहते थे ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ वापस हो
शिक्षाविद चंद्रभूषण शर्मा ने बताया, ‘सेंट्रल बोर्ड ऑफ एजुकेशन (कैप) की एक मीटिंग में गीता भुक्कल कमिटी की रिपोर्ट को पेश किया गया था. ये मीटिंग 2015 में हुई थी, स्मृति ईरानी कैप की मीटिंग की अध्यक्षता कर रही थीं, तभी उन्होंने साफ कर दिया था कि हम छात्रों को डिटेन नहीं करेंगे. इस निर्णय पर दो-तीन राज्यों का विरोध भी था, लेकिन ज्यादातर राज्य चाहते थे कि ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ वापस हो. क्योंकि भुक्कल कमिटी ने साफ-साफ कहा था कि माता-पिता नहीं चाहते हैं कि उनका बच्चे पास होते रहें. इस नीति की वजह से बच्चे सीख नहीं रहे हैं. वो उस स्तर तक नहीं पहुंच पा रहे थे, जहां से उन्हें प्रमोट किया जा सके. 2015 में कैप की मीटिंग के दौरान जो राज्य ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ खत्म करने का विरोध कर रहे थे उनमें केरल सबसे आगे था. दिल्ली, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ने भी इसका विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि हम नो डिटेंशन करेंगे. तब इसके ये मायने निकाले गए कि आठवीं तक के छात्रों को फेल नहीं किया जाएगा. सरकारें इस पालिसी को नहीं समझ पाए थे. ऐसे में सरकारी स्कूल से बच्चे प्राइवेट स्कूलों की ओर जाने लगे थे. इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि ये नियम पहले ही लागू कर दिया गया था, बस कुछ राज्यों ने इसे माना नहीं था.’
यूपीए सरकार ने जल्दबाजी की थी…
यूपीए द्वारा जल्दबाजी में लागू किये गए शिक्षा का अधिकार 2009 का जिक्र करते हुए चंद्रभूषण शर्मा ने बताया, ‘दरअसल, परेशानी ये हुई कि ‘नो डिटेंशन’ को स्कूलों ने ‘नो असेसमेंट’ समझ लिया था और इसको सरकारी स्कूलों ने ज्यादा लागू किया. सरकारी स्कूलों का तर्क था कि सरकार का निर्देश है और माता-पिता भी चाहते हैं, इसलिए हम इसे लागू करेंगे और बच्चों का असेसमेंट नहीं करेंगे. मुझे यह कहना पड़ेगा कि जल्दी-जल्दी में शिक्षा का अधिकार 2009 लागू किया गया था, यूपीए-2 में. इसको लेकर ज्यादा सोच-विचार नहीं किया गया था. ‘नो डिटेंशन’ ऐसे लागू नहीं होना था. इसके लिए शिक्षकों को तैयार करना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.’
पूरी एक जनरेशन निकल गई, जिनका असेसमेंट नहीं हुआ!
पानीपत से प्रवीण जी ने पूछा कि सरकार पॉलिसी बदल देती है, उससे छात्रों के भविष्य पर सवाल खड़ा हो जाता है. अगर बच्चे को 8वीं में फेल कर दिया जाएगा, तो उसे नुकसान होगा, ऐसा क्यों हो रहा है? इस पर शिक्षाविद चंद्रभूषण शर्मा ने कहा, ‘देखिए, एक पूरी जनरेशन निकल गया है, जिनका असेसमेंट नहीं हुआ है. वो कुछ सीखे नहीं हैं. लेकिन देर आए दुरुस्त आए, इस पॉलिसी को अब लागू किया गया है. मेरा सुझाव है कि जो बच्चे 9वीं में चले गए हैं, उनका भी फिर से असेसमेंट होना चाहिए, क्योंकि 10वीं में जाकर अटक सकते हैं. पिछले कुछ सालों में हमने देखा कि 12वीं तक के कुछ छात्रों को लिखना भी नहीं आता था, ये इसी पॉलिसी का परिणाम था.’
पैरेंट्स बोले- अब टीचर्स पर भी होगा प्रेशर
अजमेर से अजय कौशल ने पूछा कि कुछ साल पहले तक 10वीं तक ग्रेडिंग सिस्टम होता था, लेकिन 2018 में जब ग्रेडिंग सिस्टम खत्म हुआ, तो कई स्कूलों के रिजल्ट में भारी गिरावट देखने को मिली. ये वो स्कूल थे, जो ग्रेडिंग सिस्टम के समय 100 प्रतिशत रिजल्ट का दावा करते थे. इसलिए 8वीं के बच्चों को फेल करने की पॉलिसी ठीक है. इससे छात्रों को पता चल पाएगा कि वे कितने सक्षम हैं. साथ ही टीचर्स की भी जिम्मेदारी बढ़ेगी, क्योंकि उनके पढ़ाने के बावजूद क्यों 8वीं तक के बच्चे फेल हो रहे हैं, ये पूछा जाएगा.
‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ खत्म होने के बाद कक्षा 5 और 8 की वार्षिक परीक्षा में असफल छात्रों को फेल किया जाएगा. फेल छात्रों को दो महीने के भीतर पुन: परीक्षा का अवसर मिलेगा और इसमें भी फेल होने पर उन्हें अगली कक्षा में प्रोन्नत नहीं किया जाएगा। किसी भी छात्र को स्कूल से नहीं निकाला जाएगा. शिक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, यह अधिसूचना केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और सैनिक स्कूलों सहित केंद्र सरकार द्वारा संचालित 3,000 से अधिक स्कूलों पर लागू होगी.