अंधेरी रात किसे कहते हैं, पूछिए भोपाल के उन लोगों से जिन्होंने अपनी जिंदगी को एक पल में बिखरते देखा. उस रात, मौत ने इस शहर को निगल लिया, और पीछे छोड़ गए सिर्फ दर्द, चीखें और कभी न खत्म होने वाला अंधेरा … इस रात ने सिर्फ जिंदगियां ही नहीं छीनीं, बल्कि उम्मीद, प्यार और इंसानियत को भी दफन कर दिया … वरिष्ठ पत्रकार और एनडीटीवी के पूर्व ब्यूरो चीफ राजकुमार केसवानी ने इस त्रासदी की चेतावनी सालों पहले दे दी थी. उनके लेख ‘बचाइए हुजूर, इस शहर को बचाइए’ और ‘भोपाल एक ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा है’ एक मूक चीख थी … लेकिन प्रशासन, सरकार और यूनियन कार्बाइड ने इन्हें नजरअंदाज कर दिया .
जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के यूनियन कार्बाइड से रिसने के साथ ही, भोपाल एक गैस चेंबर बन गया … माताएं अपने बच्चों को छोड़ भागीं, बच्चे अपने माता-पिता को … लेकिन मौत की रफ्तार सबसे तेज थी . जब शहर शोक मना रहा था, तब नेता और अधिकारी खुद को बचाने में लगे थे. मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ‘प्रार्थना’ के लिए इलाहाबाद चले गए . अर्जुन सिंह ने बाद में अपनी आत्मकथा ‘द ग्रेन ऑफ सैंड इन दि ऑवरलैस ऑफ टाइम में सफाई दी कि वो इलाहाबाद के गिरजाघर में प्रार्थना करने गए थे और उसी शाम भोपाल लौट आए थे . एंडरसन, जो इस त्रासदी का मुख्य दोषी था, को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उसे वीआईपी ट्रीटमेंट मिला .
भोपाल गैस त्रासदी के बाद वॉरेन एंडरसन को भारत से भागने में मदद कैसे मिली, यह सवाल आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज सबसे बड़े विवादों में से एक है. इस पर प्रकाश डालते हुए, 2008 में तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह ने अपनी किताब ‘अनफोल्डिंग द बिट्रेयल ऑफ भोपाल गैस ट्रेजेडी’ में कई अहम खुलासे किए . मोती सिंह ने अपनी किताब में लिखा कि वॉरेन एंडरसन को छोड़ने का निर्णय तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के आदेश पर लिया गया था. इस पूरी प्रक्रिया को गोपनीय रखने के लिए यह सुनिश्चित किया गया कि एंडरसन की यात्रा के दौरान न तो कोई पायलट वाहन हो और न ही कोई सुरक्षा गार्ड. उन्होंने बताया, “मेरी कार की फ्रंट सीट पर उस वक्त के एसपी स्वराज पुरी बैठे थे, और पीछे की सीट पर मैं वॉरेन एंडरसन के साथ था. हम सीधे एयरपोर्ट गए. एंडरसन राज्य के विमान से भोपाल से दिल्ली रवाना हुआ और रात में वहां से अमेरिका निकल गया.” किताब में मोती सिंह ने यह भी स्वीकार किया कि एंडरसन को जिस कमरे में रखा गया था, वहां टेलीफोन चालू रहना एक बड़ी चूक थी. उन्होंने लिखा, “समय की कमी के चलते पुलिस ठीक से कमरे की जांच नहीं कर सकी. टेलीफोन डिस्कनेक्ट नहीं किया गया था. एंडरसन ने टेलीफोन का उपयोग कर पूरे मामले को पलट दिया.”
भोपाल गैस त्रासदी के बाद मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन को बचाने के आरोपों पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा ‘अ ग्रेन ऑफ सैंड इन द ऑवरग्लास ऑफ टाइम’ में विस्तार से लिखा है. अर्जुन सिंह ने बताया कि 4 दिसंबर को जब उन्हें सूचना मिली कि एंडरसन भोपाल आ रहा है, उन्होंने उसे गिरफ्तार करने का आदेश दिया। उन्होंने तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह और एसपी स्वराज पुरी को अपने आवास पर बुलाकर लिखित में निर्देश दिया, “आम तौर पर मुख्यमंत्री लिखित निर्देश नहीं देते हैं, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए मैंने लिखित आदेश देना उचित समझा. मुझे पता था कि एसपी और कलेक्टर अपने कर्तव्य का पालन करते समय भारी दबाव में होंगे.” अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा में स्पष्ट किया कि एंडरसन को रिहा करने और उसे राज्य के विमान से दिल्ली भेजने का निर्देश दिल्ली से केंद्रीय गृह मंत्रालय से दिया गया था.
अर्जुन सिंह ने लिखा, “जब मैंने हरदा में चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गांधी को एंडरसन की गिरफ्तारी की सूचना दी, तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. उसी समय हमारे मुख्य सचिव ब्रह्म स्वरूप का वायरलेस संदेश मिला. इसमें बताया गया कि दिल्ली से केंद्रीय गृह मंत्रालय का एक वरिष्ठ अधिकारी बार-बार कॉल कर रहा है और एंडरसन को जमानत देने तथा राज्य विमान से दिल्ली भेजने का निर्देश दे रहा है. अर्जुन सिंह ने खुलासा किया कि गृह मंत्रालय से कॉल करने वाले अधिकारी आर.डी. प्रधान थे. बाद में पता चला कि आर.डी. प्रधान ने यह कॉल केंद्रीय गृह मंत्री पीवी नरसिम्हा राव के निर्देश पर किया था. नेताओं की भूमिका पर आज सत्ता या विपक्ष कोई ज्यादा बात नहीं करना चाहता.
फिर वॉरेन एंडरसन कभी भारत नहीं आया
मामले की जांच सीबीआई ने की, 2010 में अदालत ने यूनियन कार्बाइड की भारतीय सहायक कंपनी और उसके सात अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई. हालांकि, सभी ने जुर्माना भरकर 14 दिन में जमानत ले ली। वहीं, मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन कभी भारत नहीं आया. इंसाफ तो छोड़िये – आज तक सरकार ये नहीं बता पाई कि इस हादसे में कितने लोगों की मौत हुई. केन्द्र सरकार भोपाल गैस त्रासदी में मृतकों के आंकड़े को 5295 बताती रही है,मध्यप्रदेश सरकार 15342 और ICMR के मुताबिक इस हादसे में लगभग 25000 लोगों की मौत हुई. जबकि हजारों पीड़ित आज तक तिल तिल मर रहे हैं. पीड़ितों की कानूनी लड़ाई अब भी जारी है. 615 करोड़ रुपये का मुआवजा पीड़ितों को बांटा गया, लेकिन कई को मात्र ₹25,000 मिले.