मोकामा में अनंत सिंह के ‘चेले’ ही उन्हें क्यों दे रहे हैं चुनौती, एके 47 से क्या है उनका रिश्ता

बिहार के बाहुबली अनंत सिंह ने शुक्रवार को बाढ़ की एक अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. इसके बाद से उन्हें जेल भेज दिया गया. उन्होंने बुधवार को मोकामा के एक गांव में हुई गोलीबारी की घटना में दर्ज हुई एफआईआर के बाद आत्मसमर्पण किया है. इस घटना के बाद से ही अनंत सिंह का नाम सुर्खियों में हैं. बिहार के सफेदपोश अपराधियों की सूची में अनंत सिंह का नाम प्रमुख है. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में दिए हलफनामे में अनंत सिंह ने अपने ऊपर 38 आपराधिक मामलों का विवरण दिया था. हलफनामे के मुताबिक अनंत सिंह पर पहला मामला मई 1979 में दर्ज हुआ था. पटना के बाढ पुलिस थाने में दर्ज यह मामला हत्या का था. यानी की अनंत सिंह पिछले चार दशक से भी अधिक समय से अपराध की दुनिया में अपना सिक्का चला रहे हैं. अनंत सिंह पर धमकी देने से लेकर चोरी, डकैती, हत्या, हत्या के प्रयास और सरकारी कर्मचारी के काम में बाधा डालने तक के आरोप लगे हैं. आइए देखते हैं कि अनंत सिंह की अपराध कथा कितनी लंबी और पुरानी हैं.

अनंत सिंह अपराध की दुनिया से होते हुए राजनीति में आए हैं. साल 2020 में वो आरजेडी के टिकट पर विधायक चुने गए थे.

अनंत सिंह के दुश्मन

जानकार बताते हैं कि अब 64 साल के हो चुके अनंत सिंह का किसी अपराध में नाम उस समय आया जब वो मात्र नौ साल के थे. इसके बाद से उनका नाम अपराध और अपराधियों से जुड़ता चला गया. आज वो मोकामा में छोटे सरकार के नाम से मशहूर हैं. इस नाम को कमाने के लिए अनंत की कथा भी अनंत है. कहा जाता है कि चार भाइयों में सबसे छोटे अनंत के परिवार की दुश्मनी अपने पट्टीदार (गोतिया) विवेका पहलवान से रही है. इस लड़ाई में दोनों तरफ से काफी खून बहा है. जानकार बताते हैं कि दोनों में अब सुलह हो चुकी है, लेकिन चिंगारी अंदर ही अंदर सुलग रही है.मोकामा के टाल इलाके में इस दुश्मनी की कई कहानियां कहीं जाती हैं. 

विवेका पहलवान, जो कभी अनंत सिंह के जानी दुश्मन हुआ करते थे.

गुरु से आगे क्यों निकल जाना चाहते हैं चेले

बुधवार को हुई फायरिंग में सोनू-मोनू गैंग का नाम सामने आया है. इस गैंग के सोनू सिंह ने मीडियाकर्मियों से बातचीत में यह स्वीकार किया है कि वो पहले विवेका पहलवान के लिए काम करते थे. वो बताते हैं कि अनंत सिंह उनके आदरणीय हैं. जानकार बताते हैं कि ये दोनों कभी अनंत सिंह के भी करीबी हुआ करते थे. लेकिन इन दोनों के मन में हर शिष्य की ही तरह गुरु से आगे बढ़ जाने की तेज इच्छा है. इसी से वशीभूत होकर वो अब अपने गुरु को ही ललकारने लगे हैं. अनंत सिंह की परेशानी भी यही है. वह नहीं चाहते हैं कि उनके जीते-जी उनके चेले उनसे आगे बढ़ जाएं. वो हर हाल में सोनू-मोनू को रोकना चाहते हैं. सोनू-मोनू भी कम नहीं हैं. जलालपुर नौरंगा निवासी इन दोनों सगे भाइयों पर हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, फिरौती और डकैती के  12 से अधिक मामले दर्ज हैं.इन दोनों का में ट्रेन में लूटपाट की कई घटनाओं में आया है. ट्रेन के रास्ते ही इन दोनों ने अपराध की दुनिया में कदम रखा है.जीआरपी के थानों में दोनों के अपराध कारनामें दर्ज हैं. अपराध से जब उनकी दहशत फैली तो उन्होंने अपनी छवि रॉबिनहुड की बनाने की सोची है. वो लोगों की छोटी-मोटी मदद कर मसीहा बनने की कोशिश कर रहे हैं. 

अनंत सिंह और एक-47 राइफल

अनंत सिंह की कहानी में एके-47 राइफल का काफी योगदान है. एक बार अनंत सिंह के गांव लदमा में पर जानलेवा हमला हुआ था. उन पर एके-47 से गोलियां बरसाई गई थीं. इस हमले में अनंत सिंह बुरी तरह से घायल हो गए थे. जानकार बताते हैं कि अनंत सिंह को ट्रेन से पटना ले जाया गया था. वहां राजेंद्र नगर टर्मिनल पर जब कोई गाड़ी अनंत सिंह को अस्पताल ले जाने के लिए नहीं मिली तो उन्हें ठेले पर लादकर अस्पताल ले जाया गया.इसके बाद उनकी जान बची थी.

अनंत सिंह के घर से बरामद हुई एके-47 राइफल.

एक बार पुलिस ने अनंत सिंह के घर पर छापा मारकर एक-47 राइफल और बुलेट प्रूफ जैकेट बरामद किया था. इस मामले में एक अदालत ने अनंत सिंह को 10 साल की सजा सुनाई थी. अनंत सिंह को जब सजा सुनाई गई तो वे मोकामा से विधायक थे.लेकिन सजायाफ्ता होने के बाद उनकी सदस्यता चली गई. मोकामा सीट पर 2022 में हुए उपचुनाव में अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी विधायक चुनी गई थीं. निचली अदालत के फैसले को अनंत सिंह ने पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. अगस्त 2024 में हाई कोर्ट ने उन्हें इस मामले से बरी कर दिया. इसके बाद वो करीब छह साल बाद पटना की बेउर जेल से रिहा हुए. हाई कोर्ट से बरी होने के बाद अनंत सिंह इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में मोकामा से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन इस बीच मोकामा के नौरंगा-जलालपुर गांव में हुई गोलीबारी की घटना ने उनकी चुनाव लड़ने की उम्मीदों को झटका लगा है. क्योंकि अभी यह तय नहीं है कि अनंत सिंह की जेल से रिहाई कब होगी. 

सोनू-मोनू की महत्वाकांक्षा

अनंत सिंह से सरेआम दुश्मनी मोल लेने वाले सोनू-मोनू की भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है. उनकी मां हेमजा ग्राम पंचायत की मुखिया हैं. लेकिन सोनू-मोनू की मंजिल बिहार विधानसभा है.उनके इस रास्ते में अनंत सिंह सबसे बड़ी बाधा है. इसलिए कभी उनके शागिर्द रहे ये दोनों  लड़के अनंत सिंह को ललकार रहे हैं. 

ये भी पढ़ें: क्या अखिलेश के PDA पर भारी पड़ेगा योगी MDPA? मिल्कीपुर में किसका चलेगा दांव  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top