रूटीन वैक्सीनेशन ऑटिज्म का शीघ्र पता लगाने में हो सकता है सहायक, 2 साल के भीतर लगा सकते हैं पता

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली के एक बाल रोग विशेषज्ञ न्यूरोलॉजिस्ट ने कहा कि हेल्थ वर्कर रूटीन वैक्सीनेशन के दौरान ऑटिज्म के लक्षणों की पहचान कर सकते हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एम्स दिल्ली के बाल रोग विभाग के चाइल्ड न्यूरोलॉजी डिवीजन की प्रोफेसर और फैकल्टी-इन-चार्ज डॉ. शेफाली गुलाटी ने बताया कि ऑटिज्म क्या है और इसे कैसे शुरुआती दौर में पहचाना जा सकता है. गुलाटी ने कहा, “ऑटिज्म एक न्यूरो डेवलपमेंट डिसऑर्डर है, जिसमें सामाजिक कमियों और बोलने में परेशानी के साथ-साथ कुछ परेशानी और बिहेवियर शामिल हैं.” उन्होंने कहा कि यह स्थिति “रुचि के कुछ निश्चित पैटर्न के साथ आती है और उनमें सेंसरी इश्यू हो सकते हैं.”

यह भी पढ़ें: क्या आप भी जरूरत से ज्यादा खाते और सोते हैं? कहीं इस डिसऑर्डर के शिकार तो नहीं? जानें इसके लक्षण और उपाय

2 साल के भीतर बच्चे में ऑटिज्म की पहचान करें:

उन्होंने बताया कि 2 साल के भीतर बच्चे में ऑटिज्म की पहचान कैसे की जा सकती है. गुलाटी ने कहा, “अगर 6 महीने का बच्चा अपने नाम पर प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है या एक साल तक उसने बड़बड़ाना शुरू नहीं किया है. अगर वह 16 महीने की उम्र में शब्द नहीं बोल रहा है. 24 महीने की उम्र में दो शब्द नहीं बोल रहा है या कुछ शब्दावली भूल गया है, तो उसमें ऑटिज्म का संदेह हो सकता है.”

गुलाटी ने कहा, “जब भी बच्चे टीकाकरण के लिए आते हैं, तो हमारे लिए यह जरूरी है कि हम विकास के सभी पड़ावों पर ध्यान दें, इसके साथ ही ऑटिज्म से संबंधित लक्षणों पर भी ध्‍यान देने की जरूरत है.”

“बीमारी की जल्दी पहचान कर इलाज शुरू करें”

उन्‍होंने इस बीमारी के शीघ्र इलाज के महत्व पर बल दिया. उन्होंने लोगों से ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों द्वारा लाई गई विविधता को स्वीकार करने और घर से ही स्वीकार करना शुरू करने का आह्वान किया. उन्‍होंने कहा कि हमें यह ध्यान रखना होगा कि ऑटिज्म से पीड़ित ये बच्चे बाकी बच्चों से अलग हैं. हर किसी में अलग-अलग विविधता होती है जिसे स्वीकार करना होगा. जब हम समाज में समावेश की बात करते हैं, तो इसकी शुरुआत घर, फिर स्कूल और समाज से होनी चहिए.

यह भी पढ़ें: सर्दियों में स्किन को चमकदार बनाने के लिए लगाएं ये घरेलू फेस पैक, त्वचा पर कुदरती चमक पाने में मिलेगी मदद

गुलाटी ने कहा कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को किसी और की तरह ही सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है साथ ही उन्होंने लोगों से मानवतावादी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ने का आग्रह किया. द लैंसेट साइकियाट्री जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि ऑटिज्म भारत में एक बड़ा स्वास्थ्य बोझ है.

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज, इंजरी एंड रिस्क फैक्टर्स स्टडी (जीबीडी) 2021 पर बेस्ड अध्ययन से पता चला है कि भारत में 2021 में प्रति 100,000 व्यक्तियों पर एएसडी के 708·1 मामले थे. इनमें से 483·7 महिलाएं थीं, जबकि 921·4 पुरुष थे. भारत में 2021 में एएसडी के कारण प्रति 100,000 व्यक्तियों में से लगभग 140 लोग खराब हेल्थ और दिव्यांगता से पीड़ित थे.

विश्व स्तर पर अनुमान है कि 2021 में 61.8 मिलियन लोग या हर 127 व्यक्तियों में से एक ऑटिस्टिक था.

Watch Video: किन लोगों को होती है फैटी लिवर की बीमारी? डॉक्टर सरीन से जानिए…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top