एनडीटीवी का चुनावी कार्निवल फिर से चुनावी सफर पर निकला है. महाराष्ट्र और झारखंड (Jharkhand) में विधानसभा चुनावों की तैयारी है. तो इस कार्निवल की शुरुआत झारखंड की रांची से, जो प्रदेश की राजधानी है और आदिवासी राजनीति का गढ़ भी. आदिवासी वोटर प्रदेश में 26 फीसदी हैं. 81 विधान सभा सीटों में 28 आरक्षित हैं, आदिवासियों के लिए. ऐसे में यहां आदिवासी वोट बहुत मायने रखते हैं. साल 2000 में बने इस राज्य में बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर झारखंड आंदोलन की अगुवाई करने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा, हर कोई आदिवासी वोट साधना चाहता है. क्योंकि कहा जाता है कि जो पार्टी आरक्षित सीटों में जीत हासिल करती है, सरकार उसी की बनती है.
मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पांच महीने बाद जब जेल से बाहर आए तो नए अंदाज में थे. सोरेन की राजनीतिक पहचान को मजबूत आधार हैं, एक तो वह आदिवासियों का एक बड़ा चेहरा हैं और दूसरा ये कि वह शिबू सोरेन के बेटे हैं. जब पांच महीने जेल में थे तो पार्टी और कार्यकर्ताओं ने उन्हें आदिवासियों के बेटे के तौर पर लोगों के बीच जाकर अभियान की शुरुआत की और आदिवासियों को मोबाइलाइज किया. और जिस दिन वह जेल से बाहर आए, वह दिन हूल दिवस था – वह दिन जब अंग्रेजों के खिलाफ संथाल आंदोलन को याद करने के लिए मनाया जाता है. इसलिए इन चुनावों में सहानुभूति फैक्टर सोरेन की जमीन को फायदा हो सकता है.
वहीं बीजेपी अपनी रणनीति तैयार कर चुकी है – बड़े आदिवासी चेहरों को कैसे वह अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही है – चंपाई सोरेन और सीता सोरेन उदाहरण हैं. वहीं बड़े जोर-शोर से बांग्लादेशियों की घुसपैठ को इस बार चुनावों में बड़ा मुद्दा बना रही है.
कुछ आंकड़े
मुस्लिम जनसंख्या राज्य में 14.5 प्रतिशत है. 7 जिलों में तो मुस्लिम 20 फीसदी से ज्यादा हैं. ये हैं- पाकुर, साहिबगंज, गोड्डा, गिरिडीह, जामताड़ा, लोहरदगा, देवघर. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व CM बाबूलाल मरांडी पहले ही कह चुके हैं संथाल परगना इलाके में आदिवासियों की घटती जनसंख्या और मुस्लिम जनसंख्या का बढ़ना चिंता का विषय है.
संथाल परगना इलाके में 18 आरक्षित सीटें हैं, चुनावी कार्निवल जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे चुनावी रणनीति की परतें भी खुलेंगी. रांची से हमारी शुरुआत हो चुकी है – डुसका का नाश्ता किया है और बिरसा मुंडा चौक पर दिहाड़ी मजदूरी मिलने का इंतज़ार कर रही महिलाओं से भी हमने बात की. महिला वोटर को लुभाने के लिए पार्टियां कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. तो अगले पड़ाव – यानी हजारीबाग में हम महिला वोटर के मुद्दों और चिंताओं पर बात करेंगे. चुनावी कार्निवल जारी है.
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