मणिपुर के जिरीबाम में हमले से फिर कैसे भड़की हिंसा, यहां जानिए

मणिपुर में मई 2023 के बाद से शुरू हुई हिंसा का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. मैतेई-कुकी जातीय हिंसा के सबसे खराब दौर की शुरुआत 7 नवंबर को जिरीबाम जिले से शुरू हुई, ये इलाका राजधानी इंफाल से 220 किलोमीटर दूर असम के साथ अंतरराज्यीय सीमा पर है. फिर शुरू हुई हिंसा में दो सप्ताह से भी कम समय में कम से कम 19 लोगों की मौत हो हो चुकी है. जिनमें 10 कुकी पुरुष शामिल हैं, जिन्हें पुलिस ने उग्रवादी करार दिया है. कुकी जनजातियों का दावा है कि 10 पुरुष गांव के वॉलिंटियर्स थे.

7 नवम्बर हमार गांव पर हमला

जिरीबाम जिला मणिपुर के लिए लाइफलाइन है, यहां से एक राष्ट्रीय राजमार्ग भी गुजरता है. जून तक एक साल से अधिक समय तक ये इलाका हिंसा मुक्त था. लेकिन एक कुकी किशोर का शव नदी में पाए जाने पर यहां भी हालात पूरी तरह बदल गए. जिरीबाम में संदिग्ध कुकी उग्रवादियों द्वारा एक मैतेई परिवार के छह सदस्यों – जिनमें एक शिशु, एक दो वर्षीय लड़का और एक आठ वर्षीय लड़की शामिल थी. उनकी जघन्य हत्या, हिंसा के उस चक्र का हिस्सा है, जिससे 7 नवंबर को फिर हिंसा भड़की. जब जिरीबाम के ज़ैरावन गांव में संदिग्ध मैतेई उग्रवादियों द्वारा हमार जनजाति की एक महिला, जो तीन छोटे बच्चों की मां और स्कूल शिक्षिका थी. उसके साथ कथित तौर पर रेप किया गया, उसके पैर में गोली मारी गई और उसकी हत्या की गई और फिर उसे आग के हवाले कर दिया.

कैसे फिर भड़की हिंसा

संदिग्ध मैतेई उग्रवादियों ने कई इमारतों में आग लगा दी, जिसमें स्कूल टीचर का घर भी शामिल है. प्रत्यक्षदर्शियों ने दावा किया कि वे पास की एक पेड़ की कतार में भागे और जलते हुए घरों को देखा. उन्होंने कहा कि उनके घर पर हमला सबसे आखिरी में हुआ था. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूल टीचर का शरीर 99 प्रतिशत जल गया था. इसमें टूटी हुई हड्डियों और अलग खोपड़ी सहित भयानक चोटों का जिक्र किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, यौन उत्पीड़न की जांच के लिए नमूने नहीं लिए जा सके क्योंकि शरीर पूरी तरह जल चुका था. रेप का आरोप उसके पति ने एक एफआईआर रिपोर्ट (एफआईआर) में लगाया था. आईटीएलएफ और अन्य कुकी नागरिक समाज समूहों ने आरोप लगाया है कि 7 नवंबर की रात के हमले में मैतई सशस्त्र समूह अरम्बाई टेंगोल (एटी) शामिल था.

एटी खुद को एक वॉलिंटियर्स ग्रुप कहता है, और दावा करता है कि कुकी-प्रमुख तलहटी के पास मैतई गांवों में सुरक्षा बलों द्वारा कथित निष्क्रियता के कारण उन्होंने समुदाय की रक्षा के लिए हथियार उठाए हैं. कुकी जनजातियों के पास सशस्त्र वॉलिंटियर्स भी हैं, जिन पर मैतई लोगों का आरोप है कि वे अच्छी तरह से प्रशिक्षित और भारी हथियारों से लैस कुकी उग्रवादियों के साथ काम कर रहे हैं.

घरों को किया आग के हवाले

31 वर्षीय शिक्षिका जिरीबाम के हर्मन ड्यू इंग्लिश जूनियर हाई स्कूल में पढ़ाती थीं. एक कॉलेज छात्र, जो उस स्कूल में पढ़ता था, जहां महिला पढ़ाती थी. उसने NDTV को बताया कि उसका अपना परिवार भी सिर्फ़ कुछ सेकंड के अंतर से मौत से बच गया, गोलियों की बौछार के बीच नंगे पैर आस-पास के जंगलों की ओर भागना पड़ा.” कॉलेज छात्र और ज़ैरावन गांव के अन्य लोगों ने, जिन्होंने सुरक्षा और गोपनीयता कारणों से नाम न बताने का अनुरोध किया. उन्होंनमे कहा कि उन्हें हमले की उम्मीद नहीं थी क्योंकि क्षेत्र में लगभग एक महीने से गोलीबारी बंद थी.

कॉलेज छात्र, जो स्कूल शिक्षिका के पति का रिश्तेदार भी है. उसने एनडीटीवी को बताया, “…ज्यादातर ज़ैरांव गांववासी (जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं) जिन्होंने (असम के) कछार में शरण ली थी, वे सीआरपीएफ जैसे सुरक्षा बलों के आश्वासन के साथ हाल ही में गांव लौट आए हैं, जो गांव में तैनात हैं. बच्चे कक्षा में वापस लौटना चाहते थे, क्योंकि पड़ोसी इलाकों में हिंसा बढ़ने के कारण उनकी पढ़ाई काफी प्रभावित हुई थी.”

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