Explainer: कभी बिकिनी में बोल्ड दिखने वाली ईरानी महिलाओं के सिर पर कैसे आया हिजाब? क्या है इसकी कहानी

ईरान में हिजाब को लेकर सख्त कानून पर अमल फिलहाल रोक दिया गया है. इसे शुक्रवार से लागू किया जाना था, लेकिन हाल-फिलहाल के माहौल और देश-विदेश में हो रही आलोचनाओं को देखते इसे टाल दिया गया है. हिजाब के नए कानून के मुताबिक जो महिलाएं अपने सिर के बाल, हाथ और पैर पूरी तरह से नहीं ढकेंगी; उनके लिए 15 साल जेल और जुर्माने का प्रावधान रखा गया है. ईरान के राष्ट्रपति मसूद पजशकियान का कहना है कि यह कानून अस्पष्ट है. इसमें सुधार की जरूरत है. उन्होंने इसके कुछ प्रावधानों पर फिर से विचार करने की बात कही है. वहीं, एमनेस्टी इंटरनेशनल समेत कई मानवाधिकार संगठनों ने इस कानून की आलोचना की है. जिसके बाद ईरान ने इस कानून ने अपने पैर पीछे खींच लिए हैं.

ईरान में हिजाब लंबे समय से विवाद का मुद्दा रहा है. हिजाब का मुद्दा 70 साल पुराना है. 1979 से पहले ईरान बहुत ही खुला हुआ समाज था. वहां महिलाओं को वोटिंग राइट से लेकर शॉर्ट्स और बिकिनी पहनने की इजाजत थी. लेकिन, शाह के तख्तापलट के बाद सब कुछ बदल गया. हिजाब को महिलाओं के लिए अनिवार्य कर दिया गया. आइए जानते हैं आखिर ईरान ने कैसे तय किया बिकिनी से हिजाब तक का सफर? क्या है इसकी कहानी:-

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हिजाब, नकाब और बुर्का में क्या अंतर?
अरबी में एक शब्द है हजब. हजब का मतलब छिपाना या ढकना होता है. हिजाब शब्द की उत्पत्ति इसी से हुई. हिजाब वास्तव में अपने आप में कोई कपड़ा नहीं है. इसका इस्तेमाल आम तौर पर सिर को ढकने के अर्थ में किया जाता है. इस्लाम में हिजाब, नकाब और बुर्का में फर्क है. हिजाब का इस्तेमाल सिर्फ सिर ढकने के लिए किया जाता है. नकाब एक तरह का पर्दा है, जिसका इस्तेमाल चेहरा ढकने के लिए किया जाता है. जबकि बुर्का का इस्तेमाल पूरा शरीर ढकने के लिए किया जाता है.

वैसे तो हिजाब की शुरुआत जरूरत पर की गई थी. मेसोपोटामिया सभ्यता के लोग तेज धूप, धूल और बारिश से सिर को बचाने के लिए लिनेन के कपड़े का इस्तेमाल करते थे. 13वीं शताब्दी के एसिरियन लेख में भी इसका जिक्र मिलता है. हालांकि, बाद में इसे धर्म से जोड़कर महिलाओं के लिए पहनना अनिवार्य कर दिया गया.

ईरान में कहां से आया हिजाब?
ईरान में हिजाब की कहानी 1950 से शुरू होती है. तब अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसी CIA के सपोर्ट से मोहम्मद रजा पहलवी ईरान की सत्ता में बैठे थे. उन्होंने अपने दौर में ईरान में कई बदलाव किए. खासतौर पर महिलाओं को बराबरी का हक दिया. उस जमाने में महिलाओं को अकेले आजाद घूमने, पब्लिक फोरम पर अपने विचार रखने, वोट देने और अपनी पसंद के कपड़े पहनने का हक था. पहलवी के शासनकाल में ईरानी महिलाओं का क्लब और पब में पुरुषों के साथ घूमना, बिकिनी पहनकर स्विमिंग करना और खुले बाल रखना आम था. महिलाएं जब चाहें घर से निकल सकती थीं. जितना चाहें और जो चाहें पढ़ सकती थीं. महिलाएं कार ड्राइव करती थीं. उन्हें किसी तरह की रोक-टोक नहीं की जाती थी. 

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1979 में बदल गई महिलाओं की जिंदगी
इस बीच ईरान में एक बार फिर बदलाव की बयार आई. 1979 में ईरान की सत्ता में बदलाव आया और ईरानी महिलाओं की जिदंगी भी हमेशा के लिए बदल गई. इस बदलाव ने महिलाओं को आगे ले जाने की वजह उन्हें कई साल पीछे धकेल दिया. जो महिलाएं कभी खुले बालों और बिकिनी में बोल्ड महसूस करती थीं. समंदर में पुरुषों के साथ सन बाथ का लुत्फ उठाती थीं. अब वो ढके लिबास और बंधे वालों में खुद भी बंधी-बंधी महसूस करने लगीं.

1979 की इस्लाम क्रांति में आखिरी शाह का तख्ता पलट हो गया. उखाड़ फेंकने के बाद 1983 से ईरान में हिजाब अनिवार्य कर दिया गया. इसे लेकर कई कानून बने. दरअसल, ईरान पारंपरिक रूप से अपने इस्लामी दंड संहिता के आर्टिकल 368 को हिजाब कानून मानता है. इसके मुताबिक, ड्रेस कोड के नियम तोड़ने वालों को 10 दिन से दो महीने तक की जेल या 50 हजार से 5 लाख ईरानी रियाल के बीच जुर्माना हो सकता है. 2023 में हिजाब के कानूनों को और सख्त किया गया, जिसके अमल पर फिलहाल रोक लग गई है.

ईरान में हिजाब को लेकर बने ये कानून?
-1983 से हिजाब पहनने के नियम बने. 
-लड़कियों के लिए कॉस्मेटिक्स के इस्तेमाल पर बैन लग गया. 
-कोई महिला लिप्स्टिक लगाए दिखती, तो धार्मिक पुलिस ब्लेड से हटवा देती. 
– ईरान की सरकार ने 1967 के फैमिली प्रोटेक्शन लॉ के सुधार खत्म कर दिए. 
-ईरान में लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल थी. इसे घटाकर 9 साल किया गया.

बच्चियों, लड़कियों और महिलाओं पर नजर रखने के लिए बनी मॉरालिटी पुलिस
ईरान में बच्चियों, लड़कियों और महिलाओं पर नजर रखने के लिए 2005 में मॉरालिटी पुलिस या गश्त-ए-इरशाद अस्तिव में आई. यह पुलिस अक्सर सड़कों पर ड्राइव कर रहीं महिलाओं को गाड़ियों से खींचकर ले जाती थी. ईरान की वेबसाइट ईरान वायर के मुताबिक, पुलिस बच्चियों से लेकर बूढ़ी महिलाओं को हिजाब ना पहनने के लिए गिरफ्तार कर लेती है. इस जोर-जबरदस्ती और डर से कई बार उन्हें जान गंवानी पड़ती. 2019 में 8 साल की एक छोटी लड़की को भी गिरफ्तार कर लिया था. बच्ची की गलती सिर्फ इतनी थी कि उसने अपना सिर नहीं ढका हुआ था.

फिर होने लगा विरोध

-ईरान में हिजाब को लेकर 2017 में व्यापक प्रदर्शन होने लगे. महिलाएं अपने हक के लिए सड़कों पर उतरने लगीं.
-नवंबर 2019 में महिलाओं ने अपनी आजादी और अपने हक को लेकर व्यापक प्रदर्शन किए.
-2022 में ईरान में महिला और छात्र संगठनों ने हिजाब का कड़ा विरोध किया.
-15 अगस्त 2023 को ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने हिजाब को लेकर कड़े कानून पर साइन कर दिए.

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परस्तू अहमदी की गिरफ्तारी के बाद हिजाब कानून पर तेज हुई बहस 
ईरान में पिछले हफ्ते महिला सिंगर परस्तू अहमदी की गिरफ्तारी के बाद हिजाब कानून को लेकर बहस तेज हो गई. दरअसल, परस्तू अहमदी ने 11 दिसंबर को यूट्यूब पर कॉन्सर्ट का वीडियो अपलोड किया था. जिसमें वो स्लीवलेस ड्रेस पहनी हुई थीं.  गुरुवार को एक कोर्ट में उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया. शनिवार को उनकी अरेस्टिंग भी हो गई. द इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके बाद 300 से अधिक ईरानी कार्यकर्ताओं, लेखकों और पत्रकारों ने पिटीशन पर साइन किए हैं, जिसमें इस नए कानून को अवैध बताया गया.

किन देशों में हिजाब पर बैन?
एक तरह जहां ईरान और अफगानिस्तान जैसे देश हिजाब पर सख्त कानून की बात करते हैं, वहीं कई ऐसे देश भी हैं जहां हिजाब पहनने पर बैन है:-
-अफ्रीका में चाड, नीजेर के कुछ क्षेत्रों, कैमरून के उत्तरी क्षेत्र और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो में पूरा चेहरा ढकने पर रोक है. 
-डेनमार्क की संसद साल 2018 में पूरा चेहरा ढकने वालों पर जुर्माने का प्रावधान करने वाला कानून बना चुकी है. कोई व्यक्ति अगर दूसरी बार इस बैन का उल्लंघन करता है तो उस पर पहली बार से 10 गुना अधिक जुर्माना वसूला जाता है या छह महीने तक की जेल की सजा होती है.
-रूस के स्वातरोपोल क्षेत्र में भी हिजाब पहनने पर रोक है. किसी को बुर्का पहनने के लिए कोई मजबूर करता है जुर्माना या दो साल तक की जेल की सजा हो सकती है. 
-फ्रांस ऐसा पहला यूरोपीय देश है जिसने हिजाब, नकाब और बुर्का पर बैन लगा रखा है. इसके तहत कोई भी महिला चाहे फ्रांसीसी हो या फिर विदेशी, पूरा चेहरा ढक कर घर के बाहर नहीं जा सकती. इस नियम को तोड़ने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया था.
– बेल्जियम में जुलाई 2011 में ही पूरा चेहरा ढकने पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है. कानूनन वहां सार्वजनिक स्थानों पर ऐसा कोई भी पहनावा नहीं इस्तेमाल किया जा सकता, जो पहनने वाले की पहचान छिपाए.
-नीदरलैंड्स में 2016 में ही सार्वजनिक परिवहन में यात्रा के दौरान पूरा चेहरा ढकने वाले नकाबों पर रोक लगा दी थी.

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