दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है और सबसे तेजी से बदल रही है टैक्नालॉजी की दुनिया. हालत ये है कि एक टैक्नालॉजी आने के कुछ ही साल के अंदर पुरानी पड़ जाती है और नई टैक्नालॉजी उसकी जगह ले लेती है. दुनिया की तमाम कंपनियों और प्रयोगशालाओं में टैक्नालॉजी की कई-कई जनरेशन पर एक ही साथ काम चल रहा है. इसी टैक्नालॉजी में से एक है आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (AI). यह एक ऐसा बदलाव है जिसे लेकर जितना कहा जाए, उतना कम है. समाज के एक वर्ग के लिए यह आने वाले दिनों में चिंता का सबसे बड़ा सबब है तो दूसरा वर्ग इसे नई सुविधाओं और सहूलियतों का सबसे बड़ा जरिया मानता है.
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमता… यानी जैसा हम सोचते हैं वैसा ही कंप्यूटर भी सोचने लगे हैं, वे इंसानों की ही तरह फैसले लेने लगे हैं. यही संक्षेप में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस है. मशीनों के अंदर इंसानी दिमाग जैसी क्षमता विकसित करने की दिशा में तो काफी काम हो ही चुका है, अब इंसानों जैसी संवेदनाएं भी इन मशीनों के अंदर लाई जा रही हैं. इसे लेकर काफी चिंताएं जताई जा चुकी हैं. AI के विकास के तहत Large Language Model तैयार किए जा रहे हैं जिनके जरिए मशीन इंसानी भाषाओं को समझ सकती हैं. भारी डेटा का इस्तेमाल करके Large Language मॉडल्स को प्रशिक्षित किया जाता है और फिर इसके इस्तेमाल से नया ओरिजनल कंटेंट तैयार किया जा सकता है. उदाहरण के लिए इन दिनों आप गूगल पर कुछ भी सर्च करते हैं तो सबसे पहला जवाब AI का ही आता है. इसे Generative AI कहा जाता है और नीचे आपने लिखा भी देखा होगा कि Generative AI is experimental. यानी ये प्रयोग के तौर पर है. इसलिए आपको सलाह है कि सिर्फ़ इस पर भरोसा न करें और भी स्रोतों से जानकारियों की पुष्टि कर लें… फिर भी काफ़ी हद तक इसमें दी गई जानकारियां तथ्यात्मक होती हैं.
पुरानी पीढ़ी के लोगों को AI नाम के इस अफलातूनी विचार से सामंजस्य बिठाने में हो सकता है समय लग रहा हो लेकिन नई पीढ़ी के लिए यह न्यू नॉर्मल है. एआई दुनिया के आधुनिकतम बदलाव का केंद्र है, न्यूक्लियस है… सब कुछ अब इसके इर्द गिर्द ही होने जा रहा है.
”मेरा बच्चा कभी भी AI से ज़्यादा स्मार्ट नहीं हो पाएगा”
AI के क्षेत्र की जानी मानी कंपनी OpenAI के CEO Sam Altman ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में कहा कि मेरा बच्चा कभी भी AI से ज़्यादा स्मार्ट यानी होशियार नहीं हो पाएगा… Altman निकट भविष्य पर बात कर रहे थे जब Artificial intelligence, human intelligence से आगे निकल जाएगी… Altman ने कहा कि यह नई वास्तविकता भविष्य की पीढ़ियों को सामान्य बात लगेगी. AI पहले से ही ऐसे काम करने में सक्षम है जो इंसान नहीं कर सकते, लेकिन क्या फ़र्क़ पड़ता है.
सैम ऑल्टमैन जैसे AI के दिग्गज वैसे जिस बात को बहुत सहज मान रहे हैं उसे लेकर असहज होने वाले लोगों की तादाद दुनिया में कम नहीं है. वे सोचते हैं कि AI जब इंसान जैसा ही सोचने लगेगा, महसूस करने लगेगा तो क्या इंसान के लिए ये चिंता की बात नहीं है? और अगर कभी AI अपने निर्माता और मालिक इंसान पर ही हावी हो जाए, उसके आदेश मानना बंद कर दे तो? अगर कभी कोई AI मॉडल दुनिया के तमाम कंप्यूटरों को हैक कर ले तो? कभी कोई शैतानी दिमाग AI को इसी तरह प्रशिक्षित करके छोड़ दे तो? ये तमाम चिंताएं लगातार जताई जाती रही हैं. इसी आधार पर इंसानियत के लिए इसे ख़तरनाक बताया जाता रहा है.
दुनिया के एक जाने माने इतिहासकार, मानव विज्ञानी और सेपियंस, होमे डेअस और नेक्सस जैसी बेस्ट सेलर किताबों के लेखक युवल नोआ हरारी ऐसे ही जानकारों में हैं. उनका कहना है कि कभी ऐसी ताकत का आह्वान मत करो जिसे काबू न कर पाओ. हरारी का मानना है कि AI में यह क्षमता है कि वह हमारे काबू से बाहर हो जाए और हमें नष्ट कर ले या गुलाम बना दे. जब मैं कहता हूं कि AI हमारे काबू से बाहर हो सकता है तो मैं ऐसा मानता हूं. क्योंकि AI एक उपकरण नहीं है बल्कि एक एजेंट है.
AI के खतरों को लेकर खत में चेतावनी
पिछले ही साल जून में OpenAI और Google DeepMind जैसी नामी AI कंपनियों में काम करने वाले कई कर्मचारियों ने एक खुला खत लिखा जिसमें advanced AI के ख़तरों को लेकर चेतावनी दी गई. आरोप लगाया गया कि कंपनियां वित्तीय मुनाफ़े के लिए ज़रूरी बातों को नज़रअंदाज़ कर रही हैं. हालांकि इन कंपनियों के मैनेजमेंट ने ऐसे खतरों की आशंका पर आश्वस्त किया और कहा कि वे पूरी ज़िम्मेदारी के साथ सबसे सुरक्षित AI सिस्टम विकसित कर रही हैं. AI के विकास से जुड़ी बड़ी कंपनियों का दावा है कि यह टैक्नालॉजी आने वाले दिनों में इंसानों की तमाम समस्याओं का हल निकालने में अहम होगी. जैसे AI के जरिए तार्किक फ़ैसले जल्द और बिना पक्षपात के लिए जा सकेंगे. इंसानी गलतियों को कम किया जा सकेगा. AI के जरिए डेटा एंट्री, रिपोर्ट तैयार करने और कस्टमर सपोर्ट जैसे कई कामों में automation किया जा रहा है.
इनोवेशन यानी कुछ नया करने में AI बड़ा मददगार साबित हो सकता है. AI के इस्तेमाल से बड़े काम काफ़ी तेज़ी से किए जा सकेंगे जो कि इंसानों द्वारा किए जाने संभव नहीं हैं. स्वास्थ्य के क्षेत्र में AI बहुत बड़ी सहूलियत साबित होगा. रोगों की जल्द पहचान, नई दवाओं का विकास इसके जरिए संभव हो पाएगा. आंकड़ों के विश्लेषण में इसके ज़रिए अभूतपूर्व तेज़ी आ रही है, जिससे कई क्षेत्रों में मदद मिलेगी चाहे वो वित्तीय योजनाएं बनाना हो या क्लाइमेट चेंज से निपटना.
डोनाल्ड ट्रंप की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर AI
इसके फायदों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि गिनाते-गिनाते सारा समय निकल जाए… सारी दुनिया ये बात समझ रही है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप तो इसे लेकर बहुत ही ज़्यादा उत्साहित हैं. राष्ट्रपति के तौर पर सत्ता के दूसरे दिन डोनाल्ड ट्रंप ने कई बड़े फ़ैसले ले लिए. इनमें से एक बड़ा फ़ैसला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI की दुनिया में अमेरिका की बादशाहत को कायम रखने का है. डोनाल्ड ट्रंप ने अगले चार साल में अमेरिका में AI के बुनियादी ढांचे को नए सिरे से तैयार करने के लिए 500 अरब डॉलर के निवेश का ऐलान किया. इसे Stargate नाम से जाना जाएगा. ट्रंप की इस खास मुहिम में कई बड़े साझीदार होंगे. इनमें जापान का सॉफ्टबैंक, generative AI में अगुआ OpenAI और जानी मानी IT कंपनी Oracle शामिल है. ट्रंप के ऐलान के दौरान OpenAI के चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव Sam Altman, SoftBank के चीफ़ Masayoshi Son और Oracle के संस्थापक Larry Ellison मौजूद रहे. AI से जुड़े इस अभियान के लिए स्टारगेट नाम से एक कंपनी बनी है जिसने 100 अरब डॉलर जारी भी कर दिए हैं.
AI के क्षेत्र में अमेरिका के सामने कई देशों की चुनौती है लेकिन सबसे बड़ी चुनौती चीन से आ रही है जिसका मुक़ाबला करने में ट्रंप किसी हाल में पीछे रहना नहीं चाहते. डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, यह ऐतिहासिक कार्य अमेरिका के भविष्य और इस प्रशासन के नेतृत्व में विश्वास का एक मजबूत संकेत है. यह परियोजना सुनिश्चित करती है कि संयुक्त राज्य अमेरिका एआई और टैक्नालॉजी में वर्ल्ड लीडर बना रहेगा, बजाय इसके कि वह चीन जैसे प्रतिस्पर्धियों को बढ़त हासिल करने दे.
दरअसल हाल के दिनों में चीन ने AI की दुनिया में बड़ी तेजी से अपनी छाप छोड़ी है. चीन के AI models ने अमेरिका को पछाड़ दिया है. इनमें इस क्षेत्र की अग्रणी OpenAI के मॉडल भी शामिल हैं. हाल में चीन के AI स्टार्ट अप DeepSeek ने दावा किया था कि उसके large language models (LLMs) ने OpenAI के अग्रणी मॉडल्स को पछाड़ दिया है.
अमेरिका में सबसे बड़ा एआई इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट
OpenAI की वेबसाइट के मुताबिक स्टारगेट प्रोजेक्ट का लक्ष्य AI में अमेरिका के नेतृत्व को सुनिश्चित करना है. स्टारगेट के जरिए हजारों नए रोजगार पैदा होंगे और दुनिया को काफी आर्थिक फायदे होंगे. डोनाल्ड ट्रंप ने इसे इतिहास का सबसे बड़ा AI infrastructure project करार दिया है, जिसके तहत क़रीब एक लाख नए रोज़गार पैदा होंगे. ये प्रोजेक्ट न सिर्फ़ अमेरिका में नए सिरे से औद्योगीकरण करेगा बल्कि अमेरिका और उसके साथी देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को बचाने के लिए सामरिक क्षमता भी मुहैया कराएगा. स्टारगेट का मुख्यालय अमेरिका के टैक्सास में होगा और अमेरिका में अलग-अलग जगहों पर बड़े डेटा सेंटर बनेंगे. स्टारगेट प्रोजेक्ट में मुख्य तौर पर SoftBank, OpenAI, Oracle और MGX जैसी नामी कंपनियां पैसा लगाएंगी. SoftBank इसकी वित्तीय जिम्मेदारियां संभालेगी जबकि OpenAI के पास इसकी operational responsibility होगी. सॉफ्टबैंक के चेयरमैन Masayoshi Son स्टारगेट के चेयरमैन होंगे. इसके अलावा अमेरिका की चिपमेकर कंपनी NVIDIA, ब्रिटेन की चेपमेकर कंपनी Arm, नामी कंपनी Microsoft, और Oracle इसके टैक्नालॉजी पार्टनर होंगी.
स्टारगेट एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है. इसमें चार साल में 500 अरब डॉलर निवेश होगा. ये रकम पूरे भारत की जीडीपी के 12 फीसदी के बराबर है.. इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और सिंगापुर की जीडीपी से बस कुछ ही कम. दुनिया के 190 देशों में से 130 देशों की अलग-अलग जीडीपी 500 अरब डॉलर से कम है. अगर अमेरिका AI के क्षेत्र में अपना रुतबा कायम रखने के लिए इतना पैसा खर्च कर रहा है तो समझ जाना चाहिए कि आने वाले दिनों में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस कितनी बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है.
कैंसर की वैक्सीन बनाने का प्रोजेक्ट
स्टारगेट प्रोजेक्ट का ऐलान करने के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने Open AI के सीईओ सैम ऑल्टमैन से पूछा कि AI की ये मुहिम बीमारियों से निपटने में कैसे सहायता करेगी तो ऑल्टमैन ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा में ये क्रांतिकारी साबित होगी. Oracle के सीईओ ने बताया कि AI के ज़रिए कैंसर की वैक्सीन बनाना संभव हो सकेगा और इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है.
अब सवाल यह है कि अमेरिका के इस स्टारगेट प्रोजेक्ट को भारत को कैसे लेना चाहिए… क्या चीन की तरह ये भारत के लिए भी एक चुनौती है या फिर मिलकर काम करने का एक और नया मंच? कई जानकारों के मुताबिक AI के क्षेत्र में दबदबे की इस मुहिम में भारत को भी अमेरिका का साझीदार बनना चाहिए.
अमेरिका और भारत के बीच उभरती टैक्नालॉजी में आपसी सहयोग की मुहिम Initiative on Critical and Emerging Technology (ICET) इसका ज़रिया बन सकती है. इसके अलावा Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity (IPEF) जैसे मंच भी AI के क्षेत्र में आपसी सहयोग का माध्यम बन सकते हैं. भारत स्टारगेट मुहिम में सेवाएं देने यानी सर्विस प्रोवाइडर के तौर पर अपनी अहम भूमिका निभा सकता है. भारत में इंजीनियरिंग का जो विशाल टैलेंट है उसके लिए स्टारगेट एक नया मौका हो सकता है. स्टारगेट में शामिल बड़ी कंपनियां जैसे Nvidia, Arm, Microsoft, Softbank, Oracle और OpenAI की पहले ही भारत में गहरी मौजूदगी है. ये कंपनियां निश्चित तौर पर भारत के टैलेंट को स्टारगेट प्रोजेक्ट में इस्तेमाल करेंगी.
AI तकनीक की दौड़ में शामिल होने के लिए भारत भी तैयार
हालांकि कई जानकारों का मानना है कि समय आ गया है जब भारत को ख़ुद अपने दम पर अपना AI infrastructure तैयार करना चाहिए. दुनिया में जब AI का नेतृत्व और नियंत्रण अपने हाथ में लेने की होड़ लगी है तो भारत को भी पीछे नहीं रहना चाहिए. टैक्नालॉजी का इस्तेमाल एक सामरिक हथियार के तौर पर भी हो रहा है इसलिए उस क्षेत्र में अपनी स्वायत्तता यानी strategic autonomy बनाए रखने के लिए अपना AI infrastructure होना चाहिए जो हमारी ज़रूरतों के हिसाब से तैयार हो.
हालांकि भारत सरकार इस चुनौती से निपटने के लिए पहले से ही तैयारी कर रही है. इसके लिए भारत सरकार ने National AI mission यानी ‘INDIAai’ शुरू किया है. इसके तहत अकादमिक जगत और उद्योग जगत के करीबी सहयोग से Artificial Intelligence के क्षेत्र में रिसर्च की क्षमताओं को विकसित किया जाएगा. स्वास्थ्य, वित्त और शिक्षा समेत हर सेक्टर में AI की बढ़ती भूमिका को देखते हुए उसके इस्तेमाल को व्यापक किया जाएगा. इसके लिए मार्च 2024 में केंद्र सरकार ने IndiaAI Mission के तहत 10,300 करोड़ रुपये मंजूर किए थे.
वित्त आयोग के पूर्व चेयरमैन एनके सिंह का कहना है कि, हम लोग आज टैक्नालॉजी के कटिंग एज पर हैं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक साधारण विद्यार्थी भी अब पढ़ता है. कैसे हारनेस किया जाए ये एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहेगा भारत को विकसित बनाने के लिए.
भारत में बढ़ता जा रहा AI का बाजार
AI के क्षेत्र में भारत में भी काम तेज हुआ है. साल 2020 से 2025 तक भारत में AI का बाज़ार सालाना 40% की दर से बढ़ा है. 2025 के अंत तक भारत में AI का बाज़ार 8 अरब डॉलर का होने की संभावना है जो 2027 तक 17 अरब डॉलर पहुंचने का अनुमान है. AI के क्षेत्र में भारत में बड़ी तेज़ी से नई कंपनियां और स्टार्टअप उभर रहे हैं. अप्रैल 2024 तक भारत में AI से जुड़े 6194 स्टार्ट अप थे. भारत में AI के क्षेत्र में तेज़ी आई है लेकिन वो तूफानी तेज़ी आनी बाकी है जो चीन और अमेरिका में दिख रही है. भविष्य पूरी जिम्मेदारी के साथ AI के क्षेत्र में इसी तूफ़ानी तेज़ी से जुड़ा हुआ है.
दुनिया में किसी भी देश के लिए अपना दबदबा अब सिर्फ सैनिक या आर्थिक ताकत के भरोसे ही कायम करना संभव नहीं है. दबदबे की ये लड़ाई बहुत ही नाज़ुक मोड़ पर है जहां आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस में जिसका हाथ भारी होगा वो आगे निकल जाएगा. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस दुनिया में power dynamics को बदल रहा है. इस होड़ में सबसे आगे दो देश अमेरिका और चीन ये बात समझते हैं. फिलहाल एडवांटेज अमेरिका को है लेकिन चीन भी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है.
जनरेटिव AI में चीन अमेरिका के साथ ज़बर्दस्त होड़ में लगा है. चीन के विश्वविद्यालयों में AI को काफ़ी बढ़ावा दिया जा रहा है. चीन की राजधानी बीजिंग में मौजूद चिनहुआ यूनिवर्सिटी वहां के सबसे बड़ी AI स्टार्ट अप का घर रही है. चीन की AI tigers कही जाने वाली चारों बड़ी कंपनियां चिफ़ू (Zhipu) AI, Baichuan AI, Moonshot AI, और MiniMax को इसी यूनिवर्सिटी के अध्यापकों और छात्रों ने बनाया है.
अमेरिका के मुकाबले चीन अब भी काफ़ी पीछे
चीन में AI के क्षेत्र में निजी निवेश अमेरिका से कम है लेकिन कुछ सालों में विदेशी निवेश बढ़ा है. इनमें सऊदी अरब की कंपनी आरामको सबसे बड़ी निवेशक के तौर पर उभरी है. चीन की सरकार भी AI कंपनियों को वित्तीय मदद देने में काफी आगे हैं. हालांकि अमेरिका के मुकाबले चीन अब भी काफ़ी पीछे है.
सन 2023 में अमेरिका में AI के क्षेत्र में 67.2 अरब डॉलर निवेश आया जबकि चीन में 7.8 अरब डॉलर का. अप्रैल 2023 में यूरोपियन यूनियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 73% large language models अमेरिका में विकसित किए जा रहे थे जबकि चीन में सिर्फ़ 15%. साल 2023 में थिंक टैंक मैक्रो पोलो के मुताबिक दुनिया के सबसे बड़े 57% AI researcher अमेरिका में काम कर रहे थे जबकि दूसरे स्थान पर चीन के पास 12% थे. दुनिया में सबसे बड़े AI रिसर्चर्स में से 26% का देश चीन था जबकि 28% का मूल अमेरिका था.
कुल मिलाकर लब्बो लुआब ये है कि AI अब देशों की सामरिक ताकत और रणनीति का अहम हिस्सा बनता जा रहा है. AI में पीछे रहना किसी भी देश की ताकत को कमजोर ही करेगा. इसलिए कोई भी बड़ा देश इसमें हल्के में लेने का जोखिम नहीं उठाना चाहेगा.