सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक फैसले में कहा कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों को आरक्षण दिया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं. हालांकि, साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राज्यों को पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व के ‘मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों’ के आधार पर उप-वर्गीकरण करना होगा, ना कि ‘मर्जी’ और ‘राजनीतिक लाभ’ के आधार पर. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत के निर्णय के जरिये ‘‘ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार” मामले में शीर्ष अदालत की पांच-सदस्यीय पीठ के 2004 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों (एससी) के किसी उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं. एक तरफ कोटे में कोटा वाले फैसले पर बीजेपी और कांग्रेस समेत ज्यादातर पार्टियां चुप्पी साधे हुए हैं, वहीं इस मामले में लोकसभा सांसद चंद्रशेखर ने अपना स्टैंड साफ कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोले चंद्रशेखर आजाद
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आजाद समाज पार्टी के नेता और लोकसभा सांसद चंद्रशेखर आजाद ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि जिन जजों ने ये ऑर्डर दिया, उसमें एससी, एसटी के कितने हैं. ये बहुत जरूरी है कि अगर आप वर्गीकरण करना ही चाह रहे हैं तो सुप्रीम कोर्ट से इसकी शुरुआत होनी चाहिए. वहां तो लंबे समय से कुछ ही परिवारों का कब्जा है. एससी और एसटी के लोगों को आप घुसने नहीं दे रहे हो लेकिन क्या सामान्य जाति के लोगों में अवसर नहीं है. उनको भी आप मौका नहीं दे रहे. अगर आपको वर्गीकरण करना ही है तो सर्वोच्च संस्था से ही क्यों ना किया जाए, नीचे से क्या करना चाहते हैं. क्या एससी, एसटी की मॉनिटिरिंग की है. जो आपने ऑर्डर दिया था रिजर्वेशन में प्रमोशन का. क्या एससी और एसटी का बैकलॉग भरा गया. क्या आपको जानकारी है कि क्या आंकड़े है जो एससी और एसटी को आरक्षण मिल रहा है. आर्थिक स्थिति के क्या आंकड़े है आपके पास. बंद कमरे में बैठकर कुछ भी फैसला ले लिया जाएगा. क्या ये आर्टिकल 341 का उल्लंघन नहीं है. आपने आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के आधार पर ईडब्ल्यूएस के फैसले को मान्यता दी.
क्या हमारे दर्द का अहसास है…
आजाद ने कहा कि क्या आपको हमारे दर्द का आर्थिक स्थिति, सामाजिक असमानता का अहसास है. और जो जुर्म हम पर होते हैं क्या उनके पास हमसे जुड़े आंकड़े हैं. हम आर्टिकल 341 को भी देखेंगे कि कहीं उसका उल्लंघन तो नहीं हो रहा. जब ईडब्ल्यूएस का ऑर्डर आया था, तब भी मैंने कहा था कि उसमें एससी और एसटी से कितने लोग थे. क्या एससी और एसटी के लोगों से बेहतर कोई अपने समुदाय के बारे में सोच सकता है. अगर सोच सकता है तो 75 सालों में क्यों नहीं सोचा गया. एनसीआरबी का डेटा दिखता है क्या. जितने फैसले हुए क्या उनकी मानिटिरिंग हुई. क्या हम सरकार की मंशा नहीं जानते कि सरकार किस तरह से बदलती है, हमने यूपी को देखा. जिस जाति के लोग राजनीति में नहीं होते, उन्हें कोई पूछता नहीं था. जब बीएसपी की सरकार गई तो सपा सरकार में क्या हुआ और जब सपा की सरकार गई तो यादवों के साथ क्या हुआ, जाटवों के साथ क्या हुआ. अब तो सब देखना पड़ेगा.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें-
संख्या के हिसाब से तय हो आरक्षण
इसके साथ ही नगीना लोकसभा सांसद चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि आरक्षण अब कहां है, इतना निजीकरण कर दिया गया. सफाई कर्मचारियों की पक्की नौकरी तक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में भी तो वर्गीकरण होना चाहिए आखिर 250-300 परिवार कब तक न्याय करते रहेंगे. एससी और एसटी के लोगों को घुसने नहीं देते क्या सामान्य जाति के लोगों में योग्यता नहीं है. गरीबों का ईडब्ल्यूएस का लाभ कहां मिल रहा है. 8 लाख की जो सीमा तय करते हैं, जनरल में जो इससे कम कमाता है उसे तो अवसर नहीं मिल रहा. जो धोखा हुआ उसे सबने नहीं देखा क्या. मैं कह रहा हूं कि गणना कर लो फिर उसके आधार पर चीजें तय हो. जिसकी जितनी संख्या उसके आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए, किसी के साथ कोई धोखा नहीं होना चाहिए.